Ep-4: वर्धमानकुँवर की वीरता
एक बार की बात है। वर्धमान कुँवर तथा उनके मित्र इमली के पेड़ के नीचे खेल रहे थे। उस समय देवराज इन्द्र ने अपनी देवसभा में वर्धमान कुँवर की निडरता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। यह सुन कर एक देव का मन हुआ कि, “चलो, मैं परीक्षा लेता हूं कि क्या वास्तव में इन्द्र जैसी कह रहे हैं वैसी निर्भयता वर्धमान कुँवर में है या नहीं?” उसने कालिया नाग का रूप धारण किया। कुँवर जहाँ खेल रहे थे, उस पेड़ पर वह नाग बनकर लटक गया। बाकी बच्चों में तो डर के मारे भगदड़ मच गई, जबकि वर्धमान कुंवर तो जरा भी नहीं डरे। अपने मित्रों का रक्षण करना अपना कर्तव्य समझ कर उन्होंने निर्भीक होकर सर्प को उठाया और दूर फेंक दिया।
मित्रगण खुशी-खुशी वापस लौट आए। खेल पुनः शुरू हुआ। अब वह देव बालक का रूप लेकर उन बच्चों में मिल गया। खेल में तय हुए नियम के अनुसार वर्धमान कुँवर से हार कर उस देव ने वर्धमान कुँवर को अपनी पीठ पर बैठाया। फिर उनको डराने के लिए देव ने अपना शरीर डरावना और दस मंजिला इमारत जितना ऊँचा बना लिया। उस समय वर्धमान कुँवर ने एक ही मुट्ठी के प्रहार से उस देव की अक्कल ठिकाने ला दी। देव वर्धमान कुँवर की यह वीरता देख कर चकित रह गया! उसने कुँवर को नमस्कार किया और कहा,“आप सचमुच महावीर हैं।” उस प्रसंग के कारण वर्धमान कुँवर का नाम महावीर” पड़ा और प्रसिद्ध हुआ।
ऐसी वीरता के स्वामी होने के बावजूद भी महावीर प्रभु ने अपने जीवन में कभी किसी के दमन का मार्ग नहीं अपनाया। उन्होंने हमेशा अपनी इन्द्रियों और मन पर विजय प्राप्त करने पर भार दिया। क्योंकि इन्द्रियों और मन को जीतना, यही वास्तविक जीत है। युद्धों में प्राप्त की हुई जीत तो मात्र कहने की जीत है। ऐसा था हमारे भगवान महावीर का बचपन!