Ep-13: भगवान श्री महावीर के प्रथम 11 शिष्य
मध्यम पावा के समवसरण में ग्यारह विद्वानों ने भगवान के पास अपनी शंका-समाधान करके दीक्षा ली थी |
ये विद्वान भगवान महावीर के प्रथम शिष्य कहलाये | अपनी असाधारण विद्वत्ता, अनुशासन-कुशलता तथा आचारदक्षता के कारण ये भगवान के गणधर बने | गणधर भगवान के गण (संघ) से स्तम्भ होते है |
तीर्थंकरों की अर्थरूप वाणी को सूत्ररूप में ग्रथित करने वाले कुशल शब्दशिल्पी होते हैं | भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे | जिनका परिचय निम्न है |
१. इन्द्रभूति
इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर के प्रधान शिष्य थे | मगध की राजधानी राजगृह के पास गोवरगांव उनकी जन्मभूमि थी | जो आज नालन्दा का ही एक विभाग माना जाता है | उनके पिता का नाम वसुभूति और माता का नाम पृथ्वी था | उनका गोत्र गौतम था |
गौतम का व्युत्पत्तिजन्य अर्थ करते हुए जैनाचायों ने लिखा है-बुद्धि के द्वारा जिसका अंधकार नष्ट हो गया है,
वह गौतम | यों तो गोतम शब्द कुल और वंश का वाचक रहा है | स्थानांग में सात प्रकार के गौतम बताए गये है-गौतम, गागर्य, भारद्वाज, आंगिरस, शर्कराम, मक्षकाम, उदकात्माम | वैदिक साहित्य में गौतम नाम कुल से भी सम्बद्ध रहा है और ऋषियों से भी | ऋग्वेद में गौतम के नाम से अनेक सूक्त मलते है,
जिनका गौतम राहूगण नामक ऋषि से सम्बन्ध है | वैसे गौतम नाम से अनेक ऋषि, धर्मसूत्रकार, न्यायशास्त्रकार, धर्मशास्त्रकार प्रभ्रति व्यक्ति हो चुके हैं | अरुणउद्दालक आरुणि आदि ऋषियों का भी पैतृक नाम गौतम था |
यह कहना कठिन है कि इन्द्रभूति गौतम का गोप क्या था, वे किस ऋषि के वंश से सम्बद्ध थे ?
किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि गौतम गोत्र के महान गौरव के अनुरूप ही उनका व्यक्तित्व विराट् व प्रभावशाली था | दूर-दूर तक उनकी विद्वत्ता की धाक थी | पांचसौ छात्र उनके पास अध्ययन के लिए रहते थे | उनके व्यापक प्रभाव से प्रभावित होकर ही सोमिलार्य ने महायज्ञ का नेतृत्व उनके हाथों में सौंपा था | पचास वर्ष की आयु में आपने पांचसौ छात्रों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की, तीस वर्ष तक छ्द्धमस्थ रहे और बारह वर्ष जीवन्मुक्त केवली | गुणशीलचैत्य में मासिक अनशन करके बानवे (९२) वर्ष की उम्र में निर्वाण को प्राप्त हुए |
२. अग्निभूति
अग्निभूति, इन्द्रभूति गौतम के मझले भाई थे | छयालीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की, बारह वर्ष तक छद्मस्थावस्था में तप-जप कर केवल ज्ञान प्राप्त किया | सोलह वर्ष तक केवली अवस्था में विचरण कर भगवान महावीर के निर्वाण से दो वर्ष पूर्व राजगृह के गुणशीलचैत्य में मासिक अनशन कर चौहत्तर वर्ष की अवस्था में निर्वाण को प्राप्त हुए |
३. वायुभूति
ये इन्द्रभूति के लघु भ्राता थे | बयालीस वर्ष की अवस्था में गृहवास को त्याग कर श्रमणधर्म स्वीकार किया था |
दस वर्ष छद्मस्थावस्था में रहे | अठारह वर्ष केवली अवस्था में रहे | सत्तर वर्ष की अवस्था में राजगृह के
गुणशीलचैत्य में मासिक अनशन के साथ निर्वाण प्राप्त किया। ये तीनों ही गणधर सहोदर थे और वेदों आदि के प्रकाण्ड पण्डित थे |
४. आर्य व्यक्त
ये कोल्लागसन्निवेश के निवासी थे, और भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण थे | उनके पिता का नाम धनमित्र और माता का नाम वारुणी था | पचास वर्ष की अवस्था में पांचसौ छात्रों के साथ श्रमणधर्म स्वीकार किया। बारह वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे | और अठारह वर्ष तक केवली पर्याय पालकर अस्सी वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन के साथ राजगृह के गुणशीलचैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए |
५. सुधर्मा
ये कोल्लागसंनिवेश के निवासी अग्नि वैश्यायन गोपीय ब्राह्मण थे | इनके पिता धम्मिल थे और माता मदिला थीं | पांचसौ छात्र इनके पास अध्ययन करते थे | पचास वर्ष की अवस्था में शिष्यों के साथ प्रव्रज्या ली |
बयालीस वर्ष पर्यन्त छद्मस्थावस्था में रहे | महावीर के निर्वाण के बाद बारह वर्ष व्यतीत होने पर केवली हुए और आठ वर्ष तक केवली अवस्था में रहे |श्रमण भगवान के सर्व गणधरों में सुधर्मा दीर्घजीवी से, अतः अन्यान्य गणधरों ने अपने-अपने निर्वाण के समय अपने-अपने गण सुधर्मा को समर्पित कर दिये थे |
महावीर निर्वाण के १२ वर्ष बाद सुधर्मा को केवलज्ञान प्राप्त हुआ और बीस वर्ष के पश्चात् सौ वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन पूर्वक राजगृह के गुणशीलचैत्य में निर्माण प्राप्त किया |
६. मण्डिक
मण्डिक मौर्यसन्निवेश के रहने वाले वसिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे | इनके पिता का नाम धनदेव और माता का नाम विजयादेवी था | इन्होंने तीनसौ पचास छात्रों के साथ त्रेपन वर्ष की अवस्था में प्रवज्या ली | सदसठ (६७) वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया और तिरासी वर्ष की अवस्था में गुणशीलचैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए |
७. मोर्यपुत्र
ये काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे | इनके पिता का नाम मौर्य और माता का नाम विजयादेवी था | मौर्यसन्निवेश के निवासी थे | तीनसो पचास छात्रों के साथ त्रेपन वर्ष की अवस्था में दीक्षा सी |
उनासी वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया | और भगवान महावीर के अन्तिम वर्ष में तिरासी (८३) वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन पूर्वक राजगृह के गुणशीलचैत्य में निर्वाण प्राप्त किया |
८. अकम्पित
ये मिथिला के रहने वाले गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे, इसके पिता देव और माता जयन्ती थी | तीन सौ छात्रों के साथ अड़तालीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली | सत्तावन वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया और भगवान महावीर के अन्तिम वर्ष में अठहत्तर वर्ष की अवस्था में राजगृह के गुणशीलचैत्य में निर्वाण प्राप्त किया |
९. अचलभ्राता
ये कोशला ग्राम के निवासी हारीत गोत्रीय ब्राह्मण थे |
आपके पिता बसु और माता नन्दा थी। तीनसौ छात्रों के साथ छयालीस वर्ष की अवस्था में श्रमणत्व स्वीकार किया |
बारह वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे और चौदह वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन के साथ राजग्रह के गुणशीलचैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए |
१०. मेतार्य
ये वत्सदेशान्तर्गत तुंगिकसन्निवेश के निवासी कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे | इनके पिता का नाम दन्त
तथा माता का नाम वरुणदेवा था | इन्होंने तीनसो छात्रों के साथ छत्तीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की |
दस वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे, और सोलह वर्ष तक केवली - अवस्था में | भगवान महावीर के निर्वाण से चार वर्ष पूर्व बासठ वर्ष की अवस्था में राजगृह के गुणशीलचैत्य में निर्वाण हुआ |
११. प्रभास
ये राजगृह के निवासी कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे | इनके पिता का नाम बल और माता का नाम अतिभद्रा था |
सोलह वर्ष की अवस्था में श्रमण धर्म स्वीकार किया | आठ वर्ष तक छदमस्थावस्था में रहे और सोलह वर्ष तक केवली अवस्था में | भगवान महावीर के सर्वज्ञ जीवन के पच्चीसवें वर्ष में राजगृह में मासिक अनशन पूर्वक चालीस वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया |