भारत में भगवान महावीर के प्राचीन मंदिर

Ep-4: श्री कुलपाकजी तीर्थ

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[ पुरातन क्षेत्र, भोजनशाला की सुविधा, चमत्कारी क्षेत्र या मुनियों की तपोभुमि, कलात्मक ]

तीर्थाधिराज: श्री आदीश्वर भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 105 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।

तीर्थ स्थल: आलेर से लगभग 6 कि. मी. दूर कुलपाक गांव के बाहर विशाल परकोटे के बीच ।

प्राचीनता: श्री आदीश्वर प्रभु की प्रतिमा श्री माणिक्यस्वामी के नाम से प्रख्यात है । प्रतिमा अति ही प्राचीन है । एक किंवदन्ति है कि श्री आदिनाथ प्रभु के पुत्र श्री भरत चक्रवर्तीजी ने अष्टापद पर्वत पर चौबीस भगवान की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करवाई थी उस समय एक प्रतिमा अपने अंगूठी में जड़े नीलम से भी बनवाई थी वही यह प्रतिमा है। कहा जाता है राजा रावण को दैविक आराधना से यह प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसे उसने अपनी पट्टरानी मन्दोदरी को दी थी। कई काल तक यह प्रतिमा लंका में रही व लंका का पतन होने पर यह प्रतिमा अधिष्ठायक देव ने समुद्र में सुरक्षित की ।

श्री अधिष्ठायक देव की आराधना करने पर विक्रम सं. 680 में श्री शंकर-राजा को यह प्रतिमा प्राप्त हुई जिसे मन्दिर का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठित करवाया गया ।

यहाँ पर सं. 1333 का एक शिलालेख है जिसमें इस तीर्थ का व माणिक्यस्वामी की प्रतिमा का उल्लेख है ।

सं. 1481 के उपलब्ध शिलालेख में तपागच्छाधिराज भट्टारक श्री रत्नसिंहसूरिजी के सान्निध्य में श्री जैन श्वेताम्बर संघ द्वारा जीर्णोद्धार हुए का उल्लेख है ।सं. 1665 के शिलालेख में आचार्य श्री विजयसेनसूरीश्वरजी का नाम उत्कीर्ण है। सं. 1767 चैत्र शुक्ला 10 के दिन पंडित श्री केशरकुशलगणीजी के सान्निध्य में श्री हैदराबाद के श्रावकों द्वारा जीर्णोद्धार हुए का उल्लेख है। उक्त समय दिल्ली के बादशाह औरंगजेब के पुत्र बहादुरशाह के सुबेदार मोहम्मद युसुफखां के सहयोग के कारण जीर्णोद्धार का कार्य सुन्दर ढंग से सम्पन्न हुआ व बड़ा परकोटा भी बनाया गया । वि. सं. 2034 में पुनः जीर्णोद्धार हुवे का उल्लेख है । कहा जाता है पेहले यहाँ के शिखर की ऊंचाई 69 फीट थी जो उक्त जीर्णोद्धार के पश्चात् शिखर की ऊंचाई 89 फीट हुई जो अभी विद्यमान है। वर्तमान में पुनः सभा मण्डप का जीर्णोद्धार हुवा है ।


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विशिष्टता: श्री माणिक्यस्वामी प्रतिमा श्री आदीश्वर भगवान के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत चक्रवर्तीजी द्वारा अष्टापद गिरी पर प्रतिष्ठित प्रतिमा होने की मानी जाने के कारण यहाँ की महान विशेषता है। यह प्रतिमा अष्टापद पर्वत पर पूजी जाने के बाद राजा रावण द्वारा पूजी गई। उसके हजारों वर्षों पश्चात् अधिष्ठायक देव की आराधना से दक्षिण के राजा शंकर को प्राप्त हुई । ऐसी प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र अति दुर्लभ है । इसके अतिरिक्त यहां पर प्रभु वीर की फिरोजे नग की बनी हंसमुख प्राचीन अद्वितीय प्रतिमा के दर्शन भी होते हैं ।

प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला 13 से पूर्णिमा तक मेला भरता है तब हजारों भक्तगण भाग लेकर प्रभु भक्ति का लाभ लेते हैं । यहाँ के अधिष्ठायक देव चमत्कारिक है । कहा जाता है कभी कभी मन्दिर में घुंघरू बजने की आवाज आती है।

अन्य मन्दिर: वर्तमान में इसके अतिरिक्त अन्य कोई मन्दिर नहीं है।

कला और सौन्दर्य: यहाँ प्रभु प्रतिमाओं की कला अत्यन्त निराले ढंग की है। यहाँ कुल 15 प्राचीन प्रतिमाएँ हैं सारी प्रतिमाएं कला में अपना विशेष महत्व रखती है । माणिक्यस्वामी की प्रतिमा व फिरोजे नगीने की बनी महावीर भगवान की प्रतिमा का तो जितना वर्णन करें कम है। प्रभु वीर की फिरोजे नग में इस आकार की बनी प्रतिमा विश्व की प्रतिमाओं में अपना अलग स्थान रखती है जो विश्व का अद्वितीय नमूना है। यहाँ के शिखर की कला भी निराले ढंग की है। यहाँ, खण्डहरों में भी अति आकर्षक कला के नमूने नजर आते हैं ।


मार्ग दर्शन: यहाँ का नजदीक का रेल्वे स्टेशन विजयवाड़ा-हैदराबाद मार्ग में आलेर लगभग 6 कि. मी. है, जहाँ पर आटो, तांगो की सवारी का साधन उपलब्ध है । आलेर स्टेशन के सामने भी धर्मशाला है, जहाँ पर पानी, बिजली की सुविधा है । यहाँ से हैदराबाद लगभग 80 कि. मी. है। यहाँ का बस स्टेण्ड लगभग 400 मीटर दूर है। मन्दिर तक पक्की सड़क है । आखिर तक कार व बस जा सकती है ।


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सुविधाएँ: ठहरने के लिए मन्दिर के अहाते में ही सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला व नास्ते की भी सुविधाएँ उपलब्ध है । इसी परकोटे में 82 कमरों की सर्वसुविधायुक्त एक और विशाल धर्मशाला का निर्माण हुवा है ।

पेढी: श्री श्वेताम्बर जैन तीर्य कुलपाक, पोस्ट कोलनपाक 508 102. व्हाया :आलेर रेल्वे स्टेशन, जिला : नलगोन्डा, प्रान्त : आन्ध्रप्रदेश, फोन: 08685-81696.

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