प्रभु महावीर का जीवन

Ep-8: पहला साधनाकाल

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ज्ञातखंड के उद्यान में पाँच महाव्रतों का उच्चारण कर दीक्षा की शाम को ही भगवान महावीर ने अपने साधना के मार्ग पर कदम आगे बढ़ाया। बड़े भाई नंदीवर्धन सहित समग्र क्षत्रियकुंड की जनता ने भारी हृदय से भगवान को विदाई दी। भगवान आगे बढ़े। भगवान महावीर की साधना एक ही धुरी पर थी : यह स्थूल काया मेरा वास्तविक अस्तित्व नहीं है। मेरा वास्तविक अस्तित्व है, मेरी आत्मा। वह तो शुद्ध, बुद्ध, निरंजन, निराकार है। काया तो उस शुद्ध आत्मा से जुड़ा हुआ बंधन है। इस बंधन का यूँ ही सर्जन नहीं होता है। इस बंधन के मूल में है संसार के पदार्थों की ममता और उनके द्वारा मेरे आत्मा से चिपके ये कर्म। इनको तोड़ने का उपाय है : देह की ममता को तोड़ना और वह टूटती है स्वयं में मस्त रहने से।

बस, यही भगवान महावीर की साधना का रहस्य था। दिन और रात मिलाकर वो लगभग २१ घण्टे तो अपनी मस्ती में हीं रमण करते रहते थे। शेष ३ घण्टे के समय में वो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के रूप में विहार करते, पारणे का दिन होता तो आहार आदि करते थे। भगवान महावीर श्रमण बने उसके बाद विविध प्रकार के लोग उनके संपर्क में आए। किसी के मन में उनके प्रति भक्ति जागी,तो किसी के मन में उनके प्रति द्वेष उत्पन्न हुआ,परंतु भगवान सभी को समान दृष्टि से देखते थे। महावीर प्रभु के अंतर की इस ऊँचाई के कारण उनके मुख पर जो तेज था, उसे देख कर तटस्थ लोगों ने भी उनको एक सुंदरसंबोधन दिया: देवार्य।

जो संपर्क में आता देवार्य उसे अपनी करुणा से भिगो देते थे। अरे! एकबार तोमात्र मनुष्य ही नहीं, बल्कि प्राणीसृष्टि का सांप जैसा प्राणी भी देवार्य की करुणा का पात्र बना था, इसका एक प्रसिद्ध प्रसंग है। देवार्य श्वेतवी नगर की ओर जा रहे थे। ग्वालों ने यह देख कर देवार्य से विनती करी कि : देवार्य, हालांकि यह मार्ग सीधा है, परंतु जोखिम वाला है। वहाँ एक भयंकर सॉप रहता है। उसकी दृष्टि में भी विष है। इसलिए आप अन्य मार्ग से जाइए। ” किंतु देवार्य को तो अपने जाने से उस भयानक साँप का उद्धार दिखाई दिया। अतः देवार्य उसी मार्ग से गए। सॉप ने उन्हें ईँस लिया, लेकिन देवार्य ध्यान में निश्चल रहे। कुछ देर बाद साँप का गुस्सा शांत हुआ। तब देवार्य ने इतना ही बोला : “चंडकौशिक, बोध प्राप्त कर। ” यह चंडकौशिक शब्द जान-बूझ कर बोला गया था। मानो उसके जादू से सौंप को अपना भूतकाल याद आ गया और उसका जीवन बदल गया। वह समता साध कर स्वर्ग में गया।



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