Ep-8: श्री हथुण्डी तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र, भोजनशाला की सुविधा, चमत्कारी क्षेत्र या मुनियों की तपोभुमि ]
तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्य, रक्त प्रवाल वर्ण, 135 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल: बीजापुर गाँव से लगभग 3 कि. मी. दूर, छटायुक्त सुरम्य पहाड़ियों के बीच ।
प्राचीनता: शास्त्रों में इसके नाम हस्तिकुण्डी, हाथिउन्डी, हस्तकुण्डिका आदि आते हैं। मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज द्वारा रचित 'श्री पार्श्वनाय भगवान की परम्परा इतिहास' में महावीर भगवान के इस मन्दिर का निर्माण वि. सं. 370 में श्री वीरदेव श्रेष्ठी द्वारा होकर आचार्य श्री सिद्धसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठित हुए का उल्लेख है। राजा हरिवर्धन के पुत्र विदग्धराजने महान प्रभावक आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी के शिष्य आचार्य श्री बलिभद्रसूरिजी, (इन्हें वासुदेवाचार्य व केशवसूरिजी भी कहते थे) से प्रतिबोध पाकर जैन धर्म अंगीकार किया था। वि. सं. 973 के लगभग इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर प्रतिष्ठा करवायी थी। राजा विदग्धराज के वंशज राजा मम्मटराज, धवलराज, बालप्रसाद आदि राजा भी जैन धर्म के अनुयायी थे । उन्होंने भी धर्म प्रचार व प्रसार के लिए काफी योगदान दिया था व मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर भेंट-पत्र प्रदान किये थे ।
वि. सं. 1053 में श्री शान्त्याचार्यजी के सुहस्ते यहाँ श्री आदिनाय भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित होने का उल्लेख आता है । वि. सं. 1335 में पुनः रातामहावीर भगवान की प्रतिमा यहाँ रहने का उल्लेख है । सं. 1335 में सेवाड़ी के श्रावकों द्वारा यहाँ श्री राता महावीर भगवान के मन्दिर में ध्वजा चढ़ाने का उल्लेख है । लगभग वि. सं. 1345 में इसका नाम हथुण्डी पड़ गया था, ऐसा उल्लेख मिलता है। बीचकाल में श्री आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा क्यों बदली गयी व वही श्री राता महावीर भगवान की प्रतिमा क्यों व कब पुनः प्रतिष्ठित की गयी उसका उल्लेख नहीं। यहाँ का पुनः जीर्णोद्धार वि. सं. 2006 में होकर पंजाब केशरी युगवीर आचार्य श्रीमद् विजयवल्लभ सूरिश्वरजी महाराज के सुहस्ते अति उल्लास व विराट महोत्सव के साथ प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हुआ। प्रतिमा वही प्राचीन चौथी शताब्दी की अभी भी विद्यमान है ।
विशिष्टता: भगवान श्री महावीर की प्रतिमा के नीचे सिंह का लांछन है। उसका मुख हाथी का है हो सकता है इसी कारण इस नगरी का नाम हरितकुण्डी पड़ा हो। इस प्रकार का लांछन अन्यत्र किसी भी प्रतिमा पर नहीं पाया जाता, यह इसकी मुख्य विशेषता है। आचार्य श्री कक्कसूरि सप्तम, आचार्य श्री देवगुप्तसूरि सप्तम, आचार्य श्री कक्कयूरि अष्टम, श्री वासुदेवाचार्य, श्री शान्तिभद्राचार्य, श्री शान्त्याचार्य, श्री सूर्याचार्य आदि प्रकाण्ड विद्वान आचार्यों ने यहाँ पदार्पण करके नाना प्रकार के धर्म प्रभावना के कार्य किये हैं, जो उल्लेखनीय है ।
श्री वासुदेवाचार्य ने हस्तिकुण्डीगच्छ की स्थापना यही पर की थी। यहीं पर रहते हुए आचार्यश्री ने आहड़ के राजा श्री अल्लट की महारानी को रेवती दोष बीमारी से मुक्त किया था। किसी समय इस पर्वतमाला पर एक विराट नगरी थी व आठ कुएँ एवं नव बावड़ियाँ थी । लगातार सोलह सौ पणिहारियाँ यहाँ पानी भरा करती थी, ऐसी कहावत प्रसिद्ध है I झामड़ व रातड़िया, राठौड़, हथुण्डिया गोत्रों का उत्पत्ति स्थान भी यहीं है, इनके पूर्वज राजा जगमालसिंहजी ने वि. सं. 988 में आचार्य श्री सर्वदेवसूरिजी व राजा श्री अनन्त सिंहजी ने वि. सं. 1208 में आचार्य श्री जयसिंहदेवसूरिजी के उपकारों से प्रभावित होकर जैन धर्म अंगीकार किया था ।
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला 13 को विशाल मेला भरता है, इस अवसर पर पहाड़ों में रहनेवाले आदिवासी, भील, गरासिये एवं दूर दूर से हजारों भक्तगण आकर प्रभु भक्ति में तल्लीन हो जाते हैं। यहाँ के रेवती यक्ष अति चमत्कारी है, जिनकी प्रतिष्ठा प्रकाण्ड विद्वान आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी के शिष्य के वासुदेवाचार्यजी ने करवाई थी ।

अन्य मन्दिर: इसके अतिरिक्त यहाँ पर नवनिर्माणित श्री महावीर वाणी का पांच मंजिला समवसरण मन्दिर हैं।
कला और सौन्दर्य: यह अति प्राचीन क्षेत्र रहने के कारण अभी भी अनेकों प्राचीन अवशेष इधर-उधर पाये जाते हैं। प्रभु महावीर के प्रतिमा की कला अपना विशिष्ठ स्थान रखती है।
प्राचीन राजमहलों के खण्डहर व प्राचीन कुएँ व बावड़ियाँ अभी भी प्राचीन कहावतों की याद दिलाते हैं।
मार्ग दर्शन: यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन जवाई बाँध लगभग 20 कि. मी. व फालना लगभग28 कि. मी. दूर है, नजदीक का बड़ा गाँव बाली लगभग 25 कि. मी है। यहाँ का बस स्टेण्ड बीजापुर गाँव मे है जो कि लगभग 3 कि. मी. है जहाँ पर टेक्सी, आटो का साधन है। आखिर मन्दिर तक सड़क है, कार व बस जा सकती है। राणकपुर तीर्थ यहाँ से लगभग 40 कि. मी. है ।
सुविधाएँ: ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त दो धर्मशालाएँ, बड़े हाल, ब्लाक व गेस्ट हाऊस बने हुए है। जहाँ पर भोजनशाला व गेस सिस्टम के साथ रसोडे की सुव्यवस्था है ।
पेढ़ी: श्री हथुण्डी राजा महावीर स्वामी तीर्थ, पोस्ट : बीजापुर - 306 707. जिला : पाली (राज.), फोन : 02933-40139.