Ep-2: श्री ऋजुवालुका तीर्थ
[पुरातन क्षेत्र , कल्याणक भूमि ]
तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, चतुर्मुख चरण-पादुकाएँ, श्वेत वर्ण, लगभग 15 सें. मी. । (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल: बराकर गाँव के पास बराकर नदी के तट पर ।
प्राचीनता: आज की बराकर नदी को प्राचीन काल में ऋजुबालुका नदी कहते थे । श्वेताम्बर शास्त्रानुसार भगवान महावीर ने जंभीय गाँव के बाहर व्यावृत चैत्य के निकट ऋजुबालुका नदी के तट पर श्यामक किशान के खेत में शालवृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ला 10 के दिन पिछली पोरसी के समय विजय मुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्त किया । तत्काल इन्द्रादिदेवों ने समवसरण की रचना की। विरीत ग्रहणादि लाभ का अभाव जानते हुवे भी प्रभु ने कल्प आचार के पालन हेतु क्षणचर धर्मोपर्दशना दी। यह प्रथम देशना निष्फल गई, जिसे आश्चर्यक (अछेरा) माना गया है ।
आज जनक नाम का गाँव यहाँ से 4 कि. मी. है। वहाँ शाल वृक्षों युक्त घना जंगल भी है । जनक गाँव का असल नाम जंभीय गाँव भी कहा जाता है एक मतानुसार राजगृही से 56 कि. मी. की दूरी पर वर्तमान जमुई गाँव है वही जंभीय है व उसके पास की क्वील नदी ही ऋजुबालुका है । लेकिन अभी तक कोई प्रमाणिकता नहीं मिलती है ।
वि. की सोलहवीं सदी में पं. श्री हंससोमविजयजी, सत्रहवीं सदी में श्री विजयसागरविजयजी व श्री जयविजयजी, अठारहवीं सदी में श्री सौभाग्यविजयजी ने अपनी तीर्थ मालाओं में यहाँ का वर्णन किया है ।
इन तीर्थ मालाओं में गाँव के नाम आदि के नामों में कोई मतभेद नहीं है। सिर्फ दूरी एक-एक तीर्थ माला में अलग-अलग बताई है । सम्भवतः समय-समय पर पग्रहंडी या सड़क का रास्ता बदले जाने से दूरी कुछ फर्क हुआ हो । अतः इसी स्थान पर, जहाँ सदियों से मानते आ रहे हैं, भगवान को केवलज्ञान हुआ मानना उचित है ।यहाँ का अन्तिम जीर्णोद्धार वि. सं. 1930 में होने का उल्लेख शिलालेखों में उत्कीर्ण है।
विशिष्टता: चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान के बारह वर्ष की घोर तपश्चर्या के कारण व केवलज्ञान प्राप्ति के कारण यहाँ के परमाणु अत्यन्त पवित्र बन चुके है। जिस स्थान पर भगवान की 12 वर्ष घोर तपश्चर्या होकर केवलज्ञान हुआ उस जगह की महानता अवर्णनीय है ।
अन्य मन्दिर: वर्तमान में इसके अतिरिक्त अन्य कोई मन्दिर नहीं है।
कला और सौन्दर्य: नदी तट पर स्थित मन्दिर का दृश्य अतीव रोचक है। मन्दिर की निर्माण शैली भी अति सुन्दर है । इसी नदी में भगवान महावीर की एक प्राचीन प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जिसकी कला अति सुन्दर है जो मन्दिर में विराजमान है ।
मार्ग दर्शन: नजदीक का रेल्वे स्टेशन गिरडिह 12 कि. मी. है। यह स्थल गिरडिह मधुबन (सम्मेतशिखर) मार्ग पर स्थित है। गिरडिह से बस व टेक्सी की सुविधा है । मधुबन से यहाँ की दूरी 18 कि. मी. है। मन्दिर तक बस व कार जा सकती है ।
सुविधाएँ: ठहरने के लिये धर्मशाला है जहाँ पानी, बिजली का साधन है ।

पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर सोसायटी, बराकर पोस्ट : बन्दरकुपी - 825 108. जिला : गिरडिह, प्रान्त : बिहार, फोन : 08736-24351.