Ep-26: श्री जूना डीसा तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र ]
तीर्थाधिराज: श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्य, श्वेत वर्ण, लगभग 45 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थस्थल: जूना डीसा गाँव के मध्यस्थ ।

प्राचीनता: यह तीर्थ क्षेत्र विक्रम की तेरहवीं सदी पूर्व का माना जाता है । पूज्य शुभशील गणीवर्य द्वारा रचित "प्रबन्ध पंचशतिका" में कलिकाल सर्वज्ञश्री हेमचन्द्राचार्य जब डीसा पधारे तब प्रवेश महोत्सव बहुत ही ठाठपूर्वक हुए का उल्लेख आता है ।गत शताब्दियों में यहाँ अनेकों मन्दिर बने होंगे । इस मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा वि. सं. 1888 में संपन्न हुई थी ।
विशिष्टता: विक्रम की तेरहवीं सदी में जब कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य मारवाड़ की तरफ से विहार करके यहाँ पधारे तब बहुत ही ठाठपूर्वक यहाँ प्रवेश उत्सव हुआ था। आचार्य श्री ने अपने आगमन से इस शहर को ही नहीं, हर श्रावक के घर को पवित्र बनाया। यहाँ के एक श्रावक की इच्छा हुई कि उसके घर में भी आचार्य श्री पधारे। यह श्रावक इतना शक्तिमान नहीं था। परंतु पत्नी के कहने पर उसने आचार्य श्री के पास जाकर विनती की, जिसपर तुरन्त ही आचार्य श्री ने मंजूरी दी व घर पधारे । श्रावक ने भक्तिभाव पूर्वक सामान्य चादर आचार्य श्री को बहराई। आचार्य श्री का जब पाटण शहर में विराट महोत्सव के साथ प्रवेश हुआ उस अवसर पर आचार्य श्री ने यही चादर धारण करके प्रवेश किया। राजा कुमारपाल आदि श्रेष्ठीगणों ने इस अतिसाधारण चादर धारण करने का कारण पूछा । तब आचार्य श्री ने कहा कि यह चादर भी एक परम भक्त द्वारा भेंट की गयी है । अगर आपको शर्म आती हो तो उन स्वधर्मी भाईयों को ऊँचा उठाओ, जिनकी स्थिति कमजोर है । राजा कुमारपाल ने इस बात पर गौर किया व तुरन्त ही आवश्यक कदम उठाया। उस श्रावक को भी बुलाकर सम्मान के साथ हजार मुद्राएँ भेंट दीं । स्वधर्मी के प्रति आचार्य श्री द्वारा किया गया कार्य अति ही उल्लेखनीय है । आचार्य श्री विजय हीरसूरीश्वरजी द्वारा सूरीमंत्र की आराधना करने पर यहीं पर शासन देवी प्रसन्न हुई थीं। शासन देवी ने आशीर्वाद देकर कहा था कि जयविमलमुनिजी को आपके पट्टधर बनाने के बाद आप के द्वारा एक महान राजा प्रतिबोधित होगा जो जैन शासन की प्रभावना बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा। तत्पश्चात् ही सम्राट अकबर ने आचार्य श्री से प्रतिबोध पाकर अपना गुरु माना व धार्मिक कार्यों के लिए अनेकों फरमान जाहिर किये । जयविमलमुनिजी बाद में आचार्य श्री सेनसूरीश्वरजी के नाम से प्रख्यात हुए। प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 6 को ध्वजा चढ़ाई जाती है।
अन्य मन्दिर: वर्तमान में यहाँ इसके अतिरिक्त एक और श्री महावीर भगवान का मन्दिर व एक दादावाड़ी है, जहाँ आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयभद्रसूरीश्वरजी महाराज आदि की चरणपादुकाएँ है।
कला और सौन्दर्य: कलात्मक प्रभु प्रतिमा अति ही सुन्दर व भावात्मक है ।
मार्गदर्शन: नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा लगभग 6 कि. मी. है, जहाँ से टेक्सी व बस की सुविधा है । यहाँ से चारूप 35 कि. मी. भीलडीयाजी 30 कि. मी. व मेत्राणा 40 कि. मी. दूर है ।
सुविधाएँ: गाँव में उपाश्रय व धर्मशाला भी है, जहाँ यात्रियों के लिए ठहरने की व भोजन की व्यवस्था हो सकती हैं ।
पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, जूना डीसा, पोस्ट : जूना डीसा - 385 540.
जिला: बनासकांढा, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02744-22035 व पी.पी. 02744-23337.