Ep-30: श्री भद्रेश्वर तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र, भोजनशाला की सुविधा, पंचतीर्थी, कलात्मक ]
तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 61 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)।
तीर्थस्थल: समुद्र के किनारे बसे भद्रेश्वर गाँव के बाहर, पूर्व भाग में लगभग आधा मील दूर एकान्त रमणीय स्थान पर ।
प्राचीनता: इसका प्राचीन नाम भद्रावती नगरी था । इस नगरी का महाभारत में भी उल्लेख मिलता है । यहाँ भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन ताम्रपत्र में, विक्रम से लगभग पाँच सदी पूर्व व चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण के 23 वर्ष पश्चात् भद्रावती नगरी के श्रावक श्री देवचन्द्र ने इस भूमि का शोधन करके तीर्थ का शिलारोपण किया व प्रभु के निर्वाण के 45 वर्षों के बाद परमपूज्य कपिल केवली मुनि के सुहस्ते भगवान श्री पार्श्वप्रभु की मनोहर प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई । उक्त सुअवसर पर इस नगरी के निवासी अखण्ड ब्रह्मचारी श्री विजय सेठ व विजया सेठाणी ने भगवती दीक्षा अंगीकार की थी, ऐसा उल्लेख है ।
विक्रम सं. 1134 में श्रीमाली भाइयों द्वारा व विक्रम सं. 1312-13 में सेठ जगडुशाह द्वारा इस तीर्थ का उद्वार करवाने का उल्लेख है। कालक्रम से बाद में कभी इस नगरी को क्षति पहुँची। तब इस मन्दिर में स्थित पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को एक तपस्वी मुनि ने सुरक्षित किया था ।
विक्रम सं. 1682 से 1688 के बीच में सेठ वर्धमान शाह ने इस तीर्थ का उद्वार करवा के श्री वीर प्रभु की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया था। तत्पश्चात् उस मुनि ने श्री पार्श्वप्रभु की प्राचीन प्रतिमा पुनः संघ को सौंप दी, जो कि अभी मन्दिर में विधमान है । कहा जाता है उसके बाद एक बार यहाँ के ठाकुर ने मन्दिर का कार्य भार संभाला था ।
विक्रम सं. 1920 में जैन श्रावकों ने ठाकुर साहब से पुनः कार्यभार प्राप्त करके, जीर्णोद्धार करवाया । अंतिम जीर्णोद्वार विक्रम सं. 1939 में मांडवी निवासी सेठ मोणसी तेजशी की धर्मपत्नी मीठाबाई ने करवाया था, ऐसा उल्लेख है ।

विशिष्टता: वीर प्रभु के निर्वाण के 45 वर्षों के पश्चात् परमपूज्य केवली कपिल मुनि द्वारा प्रतिष्ठित
श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा अतीव प्रभावशाली व दर्शनीय है । उनके द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ बहुत ही कम जगह पाई जाती है । तेरहवीं शताब्दी में दानवीर सेठ जगडुशाह का जन्म यहीं हुआ था । उन्होंने कटारिया में भी अपना महल बनाया था, ऐसा उल्लेख है । उन्होंने अपने वाणिज्य में देश परदेशों में खूब ख्याति पाई व समस्त भारत में दानवीरों में मशहूर हुए ।
इन्होंने विक्रम सं. 1315 के भारी दुष्काल में जगह जगह दान शालाएँ व अन्न शालाएँ खुलवाकर भारत के विभिन्न नरेशों को सहायता दी थी, वह उल्लेखनीय है। इनके यहाँ विदेशों के अनेकों व्यापारी हमेशा आकर रहा करते थे जिनके सुविधार्थ मन्दिर व मस्जिदें भी बनवाई थी। यह उनकी उदारता का प्रतीक है। प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला 15 को ध्वजा चढ़ाई जाती है।
अन्य मन्दिर: वर्तमान में यहाँ इसके अलावा कोई मन्दिर नहीं है।
कला और सौन्दर्य: लगभग ढाई लाख वर्ग फुट चौरस विशाल मैदान मे सुशोभित, देव विमान तुल्य यह मन्दिर अति ही आकर्षक लगता है । चरम तीर्थकर श्री वीर प्रभु की यह प्रतिमा अति ही अद्भुत व मनोरम है, ऐसी प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है। केवली कपिल मुनि द्वारा प्रतिष्ठित श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा भी अति ही सुन्दर व प्रभावशाली है। मन्दिर का निर्माण बहुत ही सुन्दर ढंग से किया गया है।
प्रवेशद्वार छोटा होते हुए भी प्रभु के दर्शन बाहर से होते है। यहाँ का वातावरण अति ही शान्त है ।
मार्गदर्शन: यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन गाँधीधाम 35 कि. मी. हैं। मन्दिर के पास ही भद्रेश्वर का बस स्टेण्ड है। नजदीक का बड़ा गाँव मुन्द्रा 27 कि. मी. व भुज 80 कि. मी. दूर है ।

सुविधाएँ: मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशाला व नवीन ब्लाक है। भोजनशाला व भाते की भी सुन्दर व्यवस्था है। संघ वालों के लिए अलग रसोडे की व्यवस्था है। लेकिन भूकम्प के कारण - काफी नुकशान हुआ है। जीर्णोद्धार कार्य चालू है ।
पेढ़ी: श्री वर्धमान कल्याणजी ट्रस्ट, वसई जैन तीर्य, महावीर नगर, पोस्ट: भद्रेश्वर 370 411. जिला: कच्छ (गुज.), फोन: 02838-83361 व 83382