Ep-23: श्री मुण्डस्थल तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र, चमत्कारी क्षेत्र या मुनियों की तपोभुमि ]
तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा, श्वेत वर्ण, लगभग 1.07 मीटर (श्वे. मन्दिर)।
तीर्थस्थल: मुंगथला गाँव के बाहरी भाग में।
प्राचीनता: यह तीर्थ भगवान महावीर के समय का माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान महावीर ने जब अपनी छद्मावस्था में इस अर्बुदगिरि की भूमि में विचरण किया तब मुण्डस्थल में नंदीवृक्ष के नीचे काउसग्ग ध्यान में रहे थे। विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में आचार्य श्री महेन्द्रसूरिजी द्वारा रचित "अष्टोत्तरी तीर्थ-माला" में भी इसका वर्णन है। इस तीर्थ-माला में यह भी कहा गया है कि श्री पूर्णराज नामक राजा ने जिनेश्वर की भक्ति के कारण महावीर भगवान के जन्म के बाद 37 वें वर्ष में एक प्रतिमा बनाई थी। एक शिलालेख पर भगवान महावीर का छद्मावस्था काल में यहाँ काउसग्ग ध्यान में रहने का व पूर्णराज राजा द्वारा भगवान की प्रतिमा निर्मित करवाकर श्रीकेशीस्वामी के सुहस्ते प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है। उपरोक्त तथ्यों के सर्वेक्षण की आवश्यकता है ताकि काफी जानकारी प्राप्त हो सके । विक्रम सं. 1216 वैशाख कृष्णा 5 को यहाँ स्तम्भों के निर्माण करवाने का उल्लेख है । विक्रम सं. 1389 में श्री धांधल द्वारा मुण्डस्थल में महावीर भगवान के मन्दिर में जिनेश्वर भगवान की युगल प्रतिमाएँ बनवाकर आचार्य श्री कक्कसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है।
विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा रचित "विविध तीर्थ कल्प" में इस तीर्थ का उल्लेख है I
विक्रम सं. 1442 में राजा श्री कान्हड़देव के पुत्र श्री बीसलदेव द्वारा वाड़ी के साथ कुआँ भेंट करने का उल्लेख मिलता है। विक्रम सं. 1501 में तपागच्छीय श्री लक्ष्मीसागरजी महाराज को मुण्डस्थल में उपाध्याय की पदवी दी गयी ।
विक्रम सं. 1722 में रचित तीर्थ माला में मुण्डस्थल में 145 प्रतिमाओं के होने का उल्लेख है ।
उसके बाद मन्दिर बहुत जीर्ण अवस्था में रहा, जिसका पुनः उद्धार होकर विक्रम सं. 2015 वैशाख शुक्ला 10 के दिन आचार्य श्री विजयहर्षसूरिजी के सुहस्ते पुनः प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई ।
विशिष्टता: भगवान महावीर का अपने छद्मावस्था काल में यहाँ पदार्पण कर काउसग्ग ध्यान में रहने का उल्लेख यहाँ की मुख्य विशेषता का सूचक है। मंत्री श्री विमलशाह व वस्तुपाल तेजपाल ने विमलवसही व लावण्यवसही की व्यवस्था हेतु मण्डलों की स्थापना की, तब मुण्डस्थल के श्रावकों को भी व्यवस्था के कार्य में शामिल किया था ।
अन्य मन्दिर: वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है ।

कला और सौन्दर्य: आज यहाँ पर कोई खास प्राचीन अवशेष प्राप्त नहीं हो रहे हैं। उल्लेखों के अनुसार यहाँ से कुछ प्राचीन प्रतिमाएँ बाहर मन्दिरों में भेज दी गई ।
मार्गदर्शन: यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन आबू रोड़ 10 कि. मी. है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा है। बस व कार मन्दिर तक जा सकती है । यहाँ से दंताणी 16 कि. मी. दूर है ।
सुविधाएँ: ठहरने के लिए धर्मशाला है। भोजनालय व ठहरने हेतु नुतन धर्मशाला का कार्य लगभग सम्पूर्णता में है ।
पेढ़ी: श्री कल्याणजी परमानन्दजी पेढ़ी, श्री मुण्डस्थल महातीर्थ
पोस्ट:मुंगथला - 307 026. जिला : सिरोही, प्रान्त : राजस्थान ।