Ep-3: श्री पावापुरी तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र, भोजनशाला की सुविधा, चमत्कारीक क्षेत्र या मुनियो की तपोभुमि, कल्याणक भुमि, कलात्मक ]
तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, चरण पादुका, श्याम वर्ण, लगभग 18 सें. मी. । (श्वेताम्बर जल मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल: पावापुरी गाँव के बाहर सरोवर के मध्य ।

चातुर्मास में भगवान के दर्शनार्थ अनेकों राजागण, श्रेष्ठीगण आदि भक्त आते रहते थे । प्रभु ने प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी को निकटवर्ती गाँव में देवशर्मा ब्राह्मण को उपदेश देने भेजा । कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के प्रातः काल प्रभु की अन्तिम देशना प्रारम्भ हुई उस समय मल्लवंश के नौ राजा, लिच्छवी वंश के नौ राजा आदि अन्य भक्तगणों से सभा भरी हुई थी। सारे श्रोता प्रभु की अमृतमयी वाणी को अत्यन्त भाव व श्रद्धा पूर्वक सुन रहे थे । प्रभु ने निर्वाण का समय निकट जानकर अन्तिम उपदेश की अखण्ड धारा चालू रखी ।
इस प्रकार प्रभु 16 पहर "उत्तराध्यायन सूत्र" का निरूपण करते हुए अमावस्या की रात्रि के अन्तिम पहर, स्वाति नक्षत्र में निर्वाण को प्राप्त हुए । इन्द्रादि देवों ने निर्वाण कल्याणक मनाया व उपस्थित राजाओं व अन्य भक्तजनों ने प्रभु के वियोग से ज्ञान का दीपक बुझ जाने के कारण उस रात्रि में घी के प्रकाशमय रत्नदीप जलाये । उन असंख्यों दीपकों से अमावस्या की घोर रात्रि को प्रज्वलित किया गया । तब से दीपावली पर्व प्रारम्भ हुआ । आज भी उस दिन की यादगार में दीपावली के दिन सारे शहर व गाँव सहस्रों दीपकों की ज्योति से जगमगा उठते हैं।
प्रभु के निर्वाण के समाचार चारों तरफ फैल चुके। लाखों देव व मानवो की भीड़ प्रभु के अन्तिम दर्शनार्य उमड़ पड़ी । इन्द्रादि देवों व जन समुदाय ने विराट जुलूस के साथ प्रभु की देह को कुछ दूर ले जाकर विधान पूर्वक अन्तिम संस्कार किया ।

देवी देवतागण व अगणित मानव समुदाय ने प्रभु के देह की कल्याणकारी भस्म को ले जाकर अपने - अपने पूजा गृह में रखा । भस्म न मिलने पर उस भस्म में मिश्रित यहाँ की पवित्र मिट्टी को भी ले गये जिससे यहाँ गड्ढा हो गया ।
भगवान के ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवर्धन ने अन्तिम देशना स्थल एवं अन्तिम संस्कार स्थल पर चौतरें बनाकर प्रभु के चरण स्थापित किये जो आज के गाँव मन्दिर व जल मन्दिर माने जाते हैं ।
जल मन्दिर में चरण पादुकाओं पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । समय-समय पर इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ । पहले इस वेदी पर चरणों के पास सं. 1260 ज्येष्ठ शुक्ला 2 के दिन आचार्य श्री अभयदेवसूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठत महावीर भगवान की एक धातु प्रतिमा थी ।
वर्तमान में यह प्रतिमा गाँवमन्दिर में हैं । आज का गाँव मन्दिर ही हस्तिपाल की रज्जुगशाला व प्रभु की अन्तिम देशना स्थल माना जाता है । इसी स्थान पर दीपावली पर्व प्रारम्भ हुआ जो अभी भी सारे भारत वर्ष में मनाया जाता है ।

समय-समय पर कई बार जीर्णोद्धार हुए। गाँव मन्दिर में वर्तमान चरण पादुकाओं पर सं. 1645 वैशाख शुक्ला 3 का लेख उत्कीर्ण है। हो सकता है, जीर्णोद्धार के समय नये चरण प्रतिष्ठित किये गये हों। आज तक यहाँ असंख्य मुनिगण व भक्तगण दर्शनार्थ आये हैं, जिनका विवरण सम्भव नहीं। प्रारम्भ से दीपावली के अवसर पर प्रभु के निर्वाणोत्सव का मेला लगता है । पेहले यह मेला पाँच दिन का होता था। जिनप्रभसूरिजी ने अपने विविध तीर्थ कल्प में लिखा है कि चातुर्वाणिक लोग यात्रा महोत्सव करते हैं। उसी एक रात्रि में देवानुभाव से कुएँ से लाए जल से पूर्ण दीपक में तेल के बिना दीपक प्रज्वलित होता है।
श्वेताम्बर समुदाय का मेला कार्तिककृष्णा अमावस्या को होता है उसी रात्रि के अन्तिम पहर में लड्डु चढ़ाते हैं।
(दिगम्बर मान्यतानुसार प्रभु कार्तिककृष्णा चतुर्दशी के रात्रि के अन्तिम पहर में निर्वाण प्राप्त हुए । अतः वे लोग उक्त रात्रि को लड्डु चढ़ाते हैं व उत्सव मनाते हैं) ।
विशिष्टता: त्रिशलानन्दन त्रैलोक्यनाय चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान की निर्वाण भूमि रहने के कारण इस पवित्र भूमि का प्रत्येक कण पूज्यनीय है
प्रभु वीर की अन्तिम देशना इस पावन भूमि में हुई थी । अतः यहाँ का शुद्ध वातावरण आत्मा को परम शान्ति प्रदान करता है ।
दीपावली त्योहार मनाने की प्रथा महावीर भगवान के निर्वाण दिवस से यहीं से प्रारम्भ हुई ।
भगवान महावीर की प्रथम देशना भी यहीं पर हुई मानी जाती है। उस स्थान पर नवीन सुन्दर समवसरण के मन्दिर का निर्माण हुआ है। यह भी मान्यता है कि इन्द्रभूति गौतम का प्रभु से यही प्रथम मिलाप हुआ था जिससे प्रभावित होकर प्रभु के पास दीक्षा ली व प्रथम गणधर बने । कल्पसूत्र में भी इसका विस्तार पूर्वक वर्णन है । (दिगम्बर मान्यतानुसार प्रथम देशना व इन्द्रभूति श्री गौतम स्वामी का मिलाप राजगृही बताया है)।

अन्य मन्दिर: गाँव का मन्दिर व जल मन्दिर इन दो श्वेताम्बर मन्दिरों के अतिरिक्त वर्तमान में यहाँ पर पुराना समवसरण मन्दिर, महताब बीबी मन्दिर व नया समवसरण मन्दिर व दादावाड़ी है । इनके अतिरिक्त जल मन्दिर के पास ही एक विशाल दिगम्बर मन्दिर है।
कला और सौन्दर्य: जल मन्दिर की निर्माण शेली का जितना वर्णन करें कम है। कमल के फूलों से लदालद भरे सरोवर के बीच इस मन्दिर का दृश्य देखने मात्र से भगवान महावीर का स्मरण हो आता है। जल मन्दिर में प्रवेश करते ही मनुष्य सारे बाह्य वातावरण भूलकर प्रभु भक्ति में अपने आपको भूल जाता है-ऐसा शुद्ध व पवित्र वातावरण है यहाँ का। अन्य श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिरों में प्राचीन कलात्मक प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं।
नवीन समवसरण मन्दिर अती ही रचनात्मक ढंग से बना है जिसकी पूर्ण रूप रेखा व योजना प. पू. गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरिजी की है। प्रतिष्ठा भी उन्ही के पावन निश्रा में हुई थी ।
मार्ग दर्शन: यहाँ से रेल्वे स्टेशन पावापुरी रोड़ 10 कि. मी. वस्तीयारपुर 44 कि. मी. व नवादा 23 कि. मी दूर है। सभी जगहों पर टेक्सी व बस की सुविधा है। नजदीक का बड़ा गाँव बिहार सरीफ 15 कि. मी. है। बिहार सरीफ - राँची नेशनल हाईवे रोड़ पर यह तीर्थ स्थित है। मुख्य सड़क से लगभग एक कि. मी. है। धर्मशाला तक व सारे मन्दिरों तक कार व बस जा सकती है। गाँव में बस व टेक्सी का साधन है।

सुविधाएँ: ठहरने के लिये गाँव के मन्दिर व नये समवसरण श्वेताम्बर मन्दिर में सर्व सुविधायुक्त कमरों व जेनरेटर आदि की सुविधा है। गाँव के मन्दिर की धर्मशाला में भोजनशाला भी है। दिगम्बर मंदिर के पास दिगम्बर धर्मशाला भी है, जहाँ भी भोजनशाला के साथ सारी सुविधाएँ हैं।
पेड़ी: 1. श्री जैन श्वेताम्बर भन्डार तीर्थ पावापुरी पोस्ट: पावापुरी - 803 115. जिला नालन्दा, प्रान्त बिहार, फोन : 06112-74736.
2. श्री दिगम्बर तीर्थ कमीटी, पावापुरी, पोस्ट: पावापुरी 803 115.