Ep-29: श्री आनन्दपुर तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र, भोजनशाला की सुविधा ]
तीर्थाधिराज: श्री आदीनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थस्थल: वडनगर स्टेशन से लगभग 1 कि. मी. दूर ऊँचे टेकरी पर बसे वडनगर गाँव में।
प्राचीनता: आज का वडनगर गांव प्राचीनकाल में चमत्कारपुर, मदनपुर, आनन्दपुर आदि नामों से विख्यात था । जैन ग्रंथों में इसका नाम वृद्धनगर व आनन्दपुर उल्लेखित है ।
किसी समय यह एक विराट नगरी थी। यहाँ पर सैकड़ों मन्दिर, वाव व कुवें आदि होने का उल्लेख है। यह भी कहा जाता है कि किसी समय यह श्री शत्रुंजय गिरिराज की तलहटी थी ।
वि. सं. 523 में परम पवित्र पावन आगम ग्रंथ "कल्पसूत्र" की श्रावकों समक्ष प्रथम वांचना यहीं पर प्रारंभ हुई थी जो अभी तक सब जगह होती आ रही है। यह भी कहा जाता है कि यह वाचना समर्थ आचार्य भगवंत श्री धनेश्वर सूरीश्वरजी द्वारा यहाँ के राजा श्री ध्रुवसेन की राज्य-सभा में उपस्थित जनसमुदाय समक्ष हुई थी जो प्रथम वाचना थी ।इससे यह सिद्ध होता है कि यह तीर्थ उससे भी पूर्व समय का है ।
वि. सं. 1208 में श्री कुमारपाल राजा ने यहाँ भव्य किला बनाया या जिसके दरवाजे तोरण आदि आज भी उस समय की याद दिलाते हैं ।
वि. सं. 1524 में प्रतिष्ठिासोमजी द्वारा रचित सोम सौभाग्य काव्य में इस वृद्धनगर में समेला नाम के तालाब का व जीवितस्वामी एवं वीर नाम के दो विहारों (मन्दिरों) का उल्लेख है ।
संभवतः आज तक यहाँ अनेकों मन्दिरों का निर्माण हुवा होगा परन्तु वर्तमान में यहाँ सिर्फ 5 मन्दिर है जिनमें यह मन्दिर प्राचीनतम माना जाता है, इसे चोटावाला मन्दिर कहते हैं। कहा जाता है कि इसका निर्माण सम्प्रति राजा ने करवाया था। यहाँ श्री महावीर भगवान का मन्दिर भी उसी समय का माना जाता है जिसे हाथीवाला मन्दिर कहते हैं ।
कहा जाता है कि चोटावाला मन्दिर का भोयरा तारंगा तक जाता था। यहाँ का अंतिम जीर्णोद्धार वि. सं. 1845 में होने का उल्लेख है।

विशिष्टता: जैन धर्म का कल्पतरुसम पावन आगम ग्रंथ "कल्पसूत्र" की जन समुदाय के समक्ष वाचना प्रारंभ होने का सौभाग्य इस पावन क्षेत्र को प्राप्त हुवा । उस समय यहाँ का नाम आनन्दपुर था। यह यहाँ की मुख्य विशेषता है ।
आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी ने यहीं पर श्रेष्ठी श्री देवराज द्वारा आयोजित विराट महोत्सव में श्री मुनिसुन्दरजी वाचक को आचार्यपद पर विभुषित किया था। यहीं से देवराज श्रेष्ठी ने श्री मुनिसुन्दरसुरिजी के साथ शत्रुंजय व गिरिनार आदि के यात्रार्थ संघ निकाला था ।
नागरों का यह उत्पति स्थान है । नागर लोग जैन धर्मावलम्बी थे, जिन्होंने अनेकों प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई । कई जिनालयों का निर्माण करवाया जिसका उदाहरण आज भी यहाँ पाया जाता है ।
यहाँ के हाथीवाला देरासर में शिखरबंध बावन देवकुलिकाओं की प्रत्येक देहरी में भगवान महावीर की प्रतिमाएँ विभिन्न नागर वाणिकों द्वारा भरवाकर प्रतिष्ठित है जो आज भी अतीव आकर्षक व दर्शनीय है ।
अन्य मन्दिर: इसके अतिरिक्त चार और मन्दिर है।
कला और सौन्दर्य: इस मन्दिर के भॉयरे में विराजित श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा अतीव सुन्दर कलात्मक व दर्शनीय है। इसी भॉयरे में से तारंगा तक रास्ता था। ऐसा कहा जाता है ।
श्री महावीर भगवान के बावन जिनालय की निर्माणशैली व सभी बावन देवकुलिकाओं में श्री वीर प्रभु की प्रतिमाएँ दर्शनीय है ।
गुर्जरनरेश श्री कुमारपाल राजा द्वारा निर्मित भव्य किले के दरवाजों व तोरणों की शिल्पकला आज भी दर्शनीय है जो गुजरात की प्राचीन शिल्पकला का सर्वोत्तम नमूना माना जाता है ।
मार्गदर्शन: यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन मेहसाणा लगभग 35 कि. मी. दूर है। जहाँ पर टेक्सी व बस की सुविधा उपलब्ध है ।
यहाँ से वीसनगर 13 कि. मी. महुडी 35 कि. मी. व तारंगा 35 कि. मी. दूर है। यह स्थल खेरालु-तारंगा मार्ग पर स्थित है ।
मन्दिर से बस स्टेण्ड लगभग 1/2 कि. मी. दूर है, मन्दिर तक कार व बस जा सकती है। गांव में आटो व टेक्सी का साधन है । नजदीक का हवाई अड्डा अहमदाबाद लगभग 100 कि. मी. दूर है ।
सुविधाएँ: ठहरने के लिये सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ भोजनशला की भी सुविधा उपलब्ध हैं ।

पेढ़ी: श्री आदिनाथ भगवान जैन श्वे. मन्दिर, श्री वड़नगर श्वे. मूर्तिपूजक जैन संघ, महावीर मार्ग, जैन देरासर के पास । पोस्ट : वड़नगर - 384 355. जिला : मेहसाणा (गुजराज), फोन: 02761-22337. पी.पी. 02761-22101.