प्रभु महावीर का जीवन

Ep-1: गर्भावस्था

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भगवान महावीर के रूप में अपने अंतिम जन्म के लिए उनकी आत्मा पूर्व भवों में अपनी आध्यात्मिक यात्रा के एक के बाद एक पड़ावों को पार करती गयी। फिर वे वर्तमान के झारखंड राज्य के लच्छवाड़ में क्षत्रियकुंड नगर के महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के गर्भ में आए।ऐसी ऊँची आत्मा के गर्भ में आने के प्रभाव से माता त्रिशला रानी को चौदह महास्वप्र आए। उसमें त्रिशला रानी ने क्रमश: हाथी, बैल, सिंह, लक्ष्मी देवी, फूलों की माला, चंद्र, सूर्य, ध्वज, जल से भरा कुंभ, पद्म सरोवर, समुद्र, देव विमान, रत्रों का ढेर और धुआं रहित अग्नि; ये चौदह वस्तुएँ देखीं।

ये सपने भविष्य का संकेत देने वाले थे। अगले दिन सिद्धार्थ राजा ने इन सपनों का संकेत जानने के लिए स्वप्र शास्त्र में निष्णात पंडितों के को बुलवाया। नगर महाराजा होने के बावजूद भी उन्होंने ज्ञान में अपने से ऊंचे उन विद्वानों का नम्रतापूर्वक सत्कार करके उनसे उन सपनों के संकेत के विषय में पूछा। स्वप्न शास्त्र के निष्णातों ने पूरी जानकारी ली और महाराजा को स्वप्न का फल बताते हुए बधाइयाँ दीं जन्म होगा।

पूत के लक्षण पालने में दिखाई देते हैं फिर ये तो एक दिव्यात्मा थे न! अतःगर्भावस्‍था से ही उनकी महिमा दिखने लगी। सिद्धार्थ राजा का कुल जो ज्ञातकुल के नाम से विख्यात था उसमें धन, धान्य, ऐश्वर्य की वृद्धि होने लगी। इस संकेत से प्रेरित होकर माता-पिता ने तभी ऐसा संकल्प कर लिया था कि हम इस बालक का नाम वर्धमान' रखेंगे।

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