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सत्ताईस भव का स्तवन

Episode 2

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प्रभु महावीर के गीत

Ep-2: सत्ताईस भव का स्तवन

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गीत के शब्द :

श्री शुभविजय सुगुरु नमी, नमी पद्मावती माय, भव सत्तावीश वर्णवुं, सुणतां समकित थाय.........॥१॥

समकित पामे जीवने, भव गणतीय गणाय, जो वली संसारे भमे, तो पण मुगते जाय...॥२॥

वीर जिनेश्वर साहिबो, भमीयो काल अनंत, पण समकित पाम्या पछी, अंते थया अरिहंत...॥३॥ -------------------------------------------------

॥ ढाल पहली ॥

पहले भवे एक गामनो रे, राय नामे नयसार, काष्ट लेवा अटवी गयो रे, भोजन वेला थाय रे, प्राणी धरीये समकित रंग, जिम पामीये सुख अभंग रे... ॥ १ ॥

मन चिंते महिमा नीलो रे, आवे तपसी कोय, दान देइ भोजन करूं रे, तो वांछित फल होय रे ...॥२॥

मारग देखी मुनिवरा रे, वंदे देइ उपयोग, पूछे केम भटको इहां रे, मुनि कहे सार्थ वियोग रे...॥३॥

हर्ष भेरतेडी गयो रे, पडिलाभ्या मुनिराज, भोजन करी कहे चालीए रे, सार्थ भेला करूं आज रे... ॥४॥

पगवटी भेला कर्या रे, कहे मुनि द्रव्य ए मार्ग, संसारे भूला भमोरे, भाव मार्ग अपवर्ग रे...॥५॥

देव गुरु ओलखावीया रे, दीधो विधि नवकार, पश्चिम महाविदेहमां रे,पाम्या समकित सार रे... ॥६॥

शुभ ध्याने मरी सुर हुओ रे, पहले स्वर्ग मोझार, पल्योपम आयु चवी रे, भरत घरे अवतार रे...॥७॥

नामे मरीची यौवने रे, संयम लीये प्रभु पास, दुष्कर चरण लही थयो रे, त्रिदंडीक शुभ वास रे... ॥८ ॥

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॥ ढाल दूसरी ॥ (राग - हे मेरे वतन के लोगो)

नवो वेश रचे तेणी वेला, विचरे आदिश्वर भेला, जल थोडे स्नान विशेषे, पग पावडी भगवे वेशे ... ॥१॥

धरे त्रिदंड लाकडी म्होटी, शिर मुडंण ने धरे चोटी, वली छत्र विलेपन अंगे, थूलथी व्रत धरतो रंगे...॥२॥

सोनानी जनोई राखे, सहुने मुनि मारग भाखे, समोसरणे पूछे नरेश, कोइ आगे होशे जिनेश...॥३॥

जिन जंपे भरतने ताम, तुज पुत्र मरीची नाम, वीर नामे थशे जिन छल्ला,आ भरते वासुदेव पहेला...॥४॥

चक्रवर्ती विदेहे थाशे, सुणी आव्या भरत उल्लासे, मरीचि ने प्रदक्षिणा देता, नमी वंदीने एम कहेता ...॥५॥

तमे पुन्याइवंत गवाशो, हरि चक्री चरम जिन थाशो, नवि वंदु त्रिदंडिक वेश, नमुं भक्तिए वीर जिनेश...॥६॥

एम स्तवना करी घेर जावे, मरीचि मन हर्ष न मावे, म्हारे त्रण पदवी नी छाप, दादा जिन चक्री बाप...॥७॥

अमें वासुदेव धुर थइशुं, कुल उत्तम म्हारूं कहीशुं, नाचे 'कुल मदशुं भराणो, नीच गोत्र तिहां बंधाणो... ॥ ८ ॥

एक दिन तनु रोगे व्यापे, कोई साधु पानी न आपे, त्यांरे वंछे चेलो एक, तव मलियो कपिल अविवेक... ॥९॥

देशना सुणी दीक्षावासे कहे मरीची लीयो प्रभु पासे, राजपुत्र कहे तुम पासे, लेशुं अमें दीक्षा उल्लासे...॥१०॥

तुम दरशने धरमनो व्हेम, सुणी चिंते मरीची एम, मुज योग्य मल्यो ए चेलो, मूल कडवे कडवो वेलो...॥११॥

मरीची कहे धर्म उभयमां, लीए दीक्षा यौवन वयमां, एणे वचणे वध्यो संसार, ए त्रीजो को अवतार... ॥ १२ ॥

लाख चौराशी पूरव आय, पाली पंचमे स्वर्ग सधाय, दश सागर जीवित त्यांही, शुभवीर सदा सुखदाई... ॥ १३ ॥

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॥ ढाल तीसरी ॥ (राग- तुम दिल की धडकन में)

पांचवे भव कोल्लाग सन्निवेश, कौशिक नामें ब्राह्मण वेश, एंशी लाख पूरव अनुसरी, त्रिदंडियाने वेशे मरी... ॥१॥

काल बहु भमियो संसार, थुणापुरी छठ्ठो अवतार, बहोंतेर लाख पूरव नु आय, विप्र त्रिदंडिक वेश धराय...॥२॥

सौधर्म मध्य स्थितिए थयो, आठमे चैत्य सन्निवेशे गयो, अग्निद्योत द्विज त्रिदंडिओ, पूर्व आयु लाख साठे मुओ... ॥३॥

मध्य स्थितिए स्वर्ग सुर इशान, दशमे मंदिर पुर द्विज ठाण, लाख छप्पन्न पूरवायुधरी, अग्निभूति त्रिदंडीक मरी... ॥४॥

त्रीजे स्वर्गे मध्यायु धरी, बारमे भवे श्वेताम्बीपुरी, पुरवलाख चुम्मालीश आय, भारद्वाज त्रिदंडिक थाय...॥५॥

तेरमे चोथे स्वर्गे रमी, काल घणो संसारे भमी, चौदमे भव राजगृही जाय, चोत्रीस लाख पूरवने आय...॥६॥

थावर विप्र त्रिदंडी थयो, पांचमे स्वर्गे मरीने गयो, सोलमे भवे क्रोड वरस नुं आय, राजकुमार विश्वभूति थाय...॥७॥

संभूति मुनि पासे अणगार, दुष्कर तप करी वरस हजार, मासखमण पारणे धरी दया, मथुरामां गोचरीए गया... ॥८॥

गाय हण्या मुनि पडिया वशा, विशाखानंदी पितरीया हस्या, गोंगे मुनि गर्वे करी, गगण उछाली धरती धरी... ॥९॥

तप बलथी होजो बल धणी, करी नियाणुं मुनि अणसणी, सत्तरमे महाशुक्रे सुरा, श्री शुभवीर सागर सत्तरा...॥१0॥

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॥ ढाल चौथी ॥ (राग - क्या खूब लगती हो / आगे के तीन आंखडी मारी प्रभु)

अढारमे भवे सात, सुपन सूचित सती, पोतन पुरीए प्रजापति, रानी मृगावती, तस सुत नामे त्रिपृष्ठ, वासुदेव निपन्या, पाप घणुं करी, सातमी नरके उपन्या...॥१॥

वीमे भव थई सिंह, चौथी नरके गया, तिहांथी चवी संसारे, भव बहुला थया, बावीशमे नरभव लही, पुण्यदशा वर्या, तेवीशमे राजधानी, मूकामे संचर्या... ॥२॥

राय धनंजय धारणी, रानीए जनमीया, लाख चौराशी पूर्व आयु जीवियां, प्रियमित्र नामे चक्रवर्ती, दीक्षा लही, कोडी वरस चारित्र दशा पाली सही...॥३॥

महाशुक्रे थई देव, इणे भरते चवि, छत्रिका नगरीए, जितशत्रु राजवी, भद्रामाय लख पचवीश, वरस स्थिति धरी, नंदन नामे पुत्रे दीक्षा आचरी...॥४॥

अगीयार लाख ने एंशी, हजार छस्से वली, उपर पीस्तालीश, अधिक पण मन रूली, वीशस्थानक मासखमणे, जावज्जीव साधता, तीर्थंकर नामकर्म, तिहां निकाचता...॥५॥

लाख वरस दीक्षा, पर्याय ते पालता, छव्वीसमे भवे प्राणतकल्पे देवता, सागर वीशनुं जीवित सुखभर भोगवें, श्री शुभवीर जिनेश्वर भव सुणजो हवे... ॥६॥

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॥ ढाल पांचमी ॥ (राग - झणझणणकारो रे)

नयर माहणकुडमां वसेरे, महात्रद्धि ऋषभदत्त नाम, देवानंदा द्विज श्राविकारे, पेट लीधो प्रभु विसराम रे, पेट लीधो...॥१॥

ब्याशी दिवसने अंतरे रे, सुर हरणीगमेषी आय, सिद्धारथ राजा घरे रे, त्रिशला कूखे छटकाय रे, त्रिशला ... ॥२॥

नव मासांतरे जनमीया रे, देव देवीए ओच्छव कीध, परणी यशोदा यौवने रे, नामे महावीर प्रसिद्ध रे, नामे ...॥३॥

संसार लीला भोगवी रे, त्रीस वर्षे दीक्षा लीध, बार वरसे हुआ केवली रे,शिववहुनुं तिलक सिर दीध रे, शिववहुनुं ... ॥४॥

संघ चतुर्विध थापियो रे, देवानंदा ऋषभदत्त प्यार, संयम देई शिव मोकल्या रे, भगवती सूत्रे अधिकार रे, भगवती...॥५॥

चोत्रिस अतिशय शोभता रे, साथे चउद सहस अणगार, छत्रीस सहस ते साध्वी रे, बीजो देव देवी परिवार रे, बीजो... ॥६॥

त्रीस वरस प्रभु केवली रे, गाम नगर ते पावन कीध, बहोंतेर वरसनुं आउखुं रे, दीवालीए शिवपद लीध रे, दीवालीये...॥७॥

अगुरुलघु अवगाहने रे, कीयो सादि अनंत निवास, मोहराय मल्ल मुलशुं रे, तन मन सुखनो होय नाश रे, तन मन...॥८॥

तुम सुख एक प्रदेश नुं रे, नवि माये लोकाकाश, तो अमने सुखीआ करो रे, अमे धरीए तुमारी आश रे, अमे... ॥९॥

अखय खजानो नाथनो रे मे दीठो गुरु उपदेश, लालच लागी साहेबा रे,नवि भजीये कुमतिनो लेश रे, नवि भजीये...॥१०॥

म्होटानो जे आशरो रे, तेथी पामीये लील विलास, द्रव्य भाव शत्रु हणी रे, शुभवीर सदा सुख वास रे, शुभ वीर...॥११॥

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• कलश •

ओगणीश एके, वरस छेके, पूर्णिमा श्रावण वरो, में थुण्यो लायक विश्वनायक, वर्द्धमान जिनेश्वरो, संवेग रंग तरंग झीले, जसविजय समता धरो, शुभविजय पंडित चरण सेवक, वीरविजय जयकरो ॥

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गायक: तोरल कोठारी भाभेरा और जयश्री शाह संगीत संयोजक और प्रोग्रामर: प्रतीक शाह रिकॉर्डिंग स्थान: स्टूडियो बस-इन, मुंबई रिकॉर्डिंग द्वारा: विराट वीडियो संपादक: दर्शनी भाभेरा



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