प्रभु महावीर का जीवन

Ep-6: विरक्तिकाल

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समय बीता और वर्धमान कुमार के वैवाहिक जीवन में एक पुत्री अवतरित हुई। उसका नाम प्रियदर्शना रखा गया। वर्थमान कुमार की आयु २८ वर्ष की होने पर उनके माता और पिता दोनों का स्वर्गवास हो गया। तब गर्भ से जो वैराग्य हृदय में दबा हुआ पड़ा था मानो वो बाहर उमड़ आया। औचित्यपालन के भंडार वर्धमान कुमार ने अपने बड़े भाई नंदीवर्धन के पास अपनी दीक्षा (संन्यास) ग्रहण करने की भावना प्रकट की।

यह सुन कर भाई नंदीवर्धन का गला भर आया। भरे गले से उन्होंने कहा, “बंधु, मैं बचपन से तेरा वैराग्य देखता आया हूँ। अरे! तू तो गर्भ से ही समझशक्ति, निर्णयशक्ति तथा अतीन्द्रिय ज्ञान लेकर आया है और इसीलिए तूने गर्भ में ही माता-पिता के तेरे प्रति अमाप स्नेह को समझ कर उनके जीते जी व्रत नहीं स्वीकार करने का निर्णय किया था; परंतु भाई, अभी-अभी ही माता-पिता का वियोग हुआ है और अगर तू भी चला जाएगा, तो मैं क्या करूंगा ? इसलिए मैं तुझसे भावपूर्ण आग्रह करता हूंकि तू कुछ समय रुक जा। क्या तू मेरी इतनी सी बात भी नहीं मानेगा? तेरा विनय तो आकाश को स्पर्श करता है। मुझे विश्वास है कि तू मेरी बात जरूर मानेगा। मानेगा न?” वर्धमान कुमार, अर्थात्‌ विनय की मूर्ति! उन्होंने बड़े भाई से बहुत नम्रतापूर्वक कहा : “ज्येष्ठ बंधु, आप कहते हैं तो मैं और दो वर्ष रुक जाता हूँ, परंतु अब आप मुझसे और आग्रह मत कीजिएगा।”

इस प्रकार वर्धमान कुमार और दो वर्ष संसार में रहे, परंतु इस दरमियान उन्होंने अपना जीवन आमूलचूल बदल दिया। अब उनके वर्तन में नितांत वैराग्य झलक रहा था। उन्होंने अपने लिए भोजन संबंधी कोई भी विशेष व्यवस्था करने का निषेध कर दिया। वो स्नान नहीं करते थे, मात्र हाथ-पैर का प्रक्षालन करते थे। सदैव ब्रह्मचारी के रूप में जीते थे। ज्यादातर समय तो शरीर को स्थिर रख कर ध्यान में ही बिताते थे। मानो दो वर्ष बाद शुरू होने वाली विराट साधना की पूर्वतैयारी कर रहे हों ! और ऐसी स्थिति में एक वर्ष बीता तो जैन शास्त्रों में दिए गए वर्णन के अनुसार इस दुनिया से ऊपर जो देवों की दुनिया है, उसमें से निश्चित स्थान पर स्थित 'लोकांतिक' नामक देवों ने आकर भगवान महावीर से विनती करी कि : “भगवन्‌! आप तो सब जानते ही हैं, परंतु हम अपने कर्तव्य के रूप में आपको याद दिलाते हैं कि आप संसार का त्याग करके दुनिया को सच्चा रास्ता बताएं, ऐसी वाणी का उजाला फैलाएँ!” इसके साथ ही, दूसरे दिन से पूरे क्षत्रियकुंड में हलचल मच गई।


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