भारत में भगवान महावीर के प्राचीन मंदिर

Ep-14: श्री अजारी तीर्थ

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[ पुरातन क्षेत्र, चमत्कारी क्षेत्र या मुनियों की तपोभुमि, पंचतीर्थी ]


तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 75 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।

तीर्थस्थल: अजारी गाँव के मध्य ।

प्राचीनता: यह अति प्राचीन स्थान है। इस गाँव की व मन्दिर की प्राचीनता का पता लगाना कठिन-सा है । शास्त्रों में उल्लेखानुसार कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमाचन्द्राचार्य ने इस गाँव के निकट श्री मार्कन्डेश्वर में श्री सरस्वती देवी के मन्दिर में सरस्वती देवी की आराधना की थी। इस मन्दिर के निकट एक बावड़ी में विक्रम सं. 1202 का लेख उत्कीर्ण है, जिसमें परमार राजा यशोधवल का वर्णन है । यहाँ पर कुछ धातु प्रतिमाओं पर ग्यारहवीं, बारहवीं व तेरहवीं सदी के लेख उत्कीर्ण हैं। प्रतिमाजी पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है। प्रतिमाजी की कलाकृति से प्रमाणित होता है कि यह प्रतिमा अति प्राचीन है। इस भव्य बावनजिनालय मन्दिर में सारी प्रतिमाएँ राजा संप्रतिकाल की प्रतीत होती है। मन्दिर में कुछ आचार्य भगवन्तों की भी मनोज्ञ प्रतिमाएँ हैं । एक प्रतिमा अति ही सुन्दर है, जिसपर सं. 12 का लेख उत्कीर्ण हैं । यहाँ के अन्तिम जीर्णोद्धार के समय प्रतिष्ठा आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरिजी की पावन निश्रा में हुवे का उल्लेख है ।

विशिष्टता: कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमाचन्द्राचार्य ने यहाँ के निकट श्री मार्कन्डेश्वर में श्री सरस्वती देवी की आराधना की थी, तब श्री सरस्वती देवी ने प्रसन्न होकर इस मन्दिर में श्री हेमाचन्द्राचार्य को प्रदक्षिणा देते वक्त साक्षात् दर्शन दिया था। कहा जाता है श्री हेमचन्द्राचार्य ने इस मन्दिर में श्री सरस्वती देवी की प्रतिमा की स्थापना करवायी थी जो कि अभी भी विद्यमान है। इस प्रतिमा पर वि. सं. 1269 में श्री शान्तिसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित होने का लेख उत्कीर्ण है। हो सकता है श्री हेमाचन्द्राचार्य के उपदेश से यह प्रतिमा बनवायी गयी हो व प्रतिष्ठा श्री शान्तियूरिजी के सुहस्ते हुई हो । श्री सरस्वती देवी के चमत्कार प्रख्यात हैं। अभी भी अनेकों जैन-जैनेतर विद्या प्राप्ति के लिए जो भावना भाते हैं उनकी मनोकामना सिद्ध होती है। यह तीर्य छोटी मारवाड़ पंचतीर्थी का एक स्थान है। वर्तमान में लगभग 70 वर्ष पूर्व आबू के योगीराज विजय श्री शान्तिसूरिजी ने भी यहाँ के निकट जंगलों में कठोर तपश्चर्या की थी व मार्कन्डेश्वर में सरस्वती देवी की आराधना करने पर श्री सरस्वती देवी साक्षात् प्रकट हुई थी । विजय श्री शान्ति सूरीश्वरजी के रहने का वह स्थान मार्कन्डेश्वर में अभी भी यथावत् है । कविवर कालीदास की भी यह जन्मभूमि है।प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णीमा को मेले का आयोजन होता है व वैशाख शुक्ला पंचमी को ध्वजा चढ़ाई जाती है ।

अन्य मन्दिर: वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है। मार्कन्डेश्वर में श्री सरस्वती देवी का मन्दिर यहाँ से लगभग 12 कि. मी. दूर है।

कला और सौन्दर्य: बावनजिनालय मन्दिर की कला अति दर्शनीय है। सारी प्रतिमाएँ राजा संप्रति काल की अति ही सुन्दर व मनमोहक हैं। इस मन्दिर में व मार्कन्डेश्वर में सरसवती देवी की प्रतिमाएँ अति प्रभावशाली है । सरस्वती देवी की इतनी प्राचीन व प्रभावशाली प्रतिमाओं के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं ।

मार्गदर्शन: यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन सिरोही रोड़ 5 कि. मी. है। बामनवाडजी तीर्थ से यह स्थल 12 कि. मी. नाब्दिया तीर्थ से 10 कि. मी. व पिन्डवाड़ा से 3 कि. मी. दूर है। मन्दिर तक पक्की सड़क है ।


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सुविधाएँ: ठहरने के लिए मन्दिर के निकट धर्मशाला है । परन्तु अभी तक खास सुविधा नहीं है अतः पिन्डवाड़ा या बामनवाडजी में ठहरकर आना ज्यादा उपयुक्त है। जहाँ सारी सुविधाएँ उपलब्ध है ।

पेढ़ी: शेठ कल्याणजी सोभागचंदजी जैन पेढ़ी, पोस्ट : अजारी - 307 021.

जिला: सिरोही, प्रान्त : राजस्थान, फोन : 02971-20028. (पिन्डवाडा) पी.पी.

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