Ep-24: श्री वरमाण तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र, भोजनशाला की सुविधा ]
तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, लगभग 1.4 मीटर (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थस्थल: वरमाण गाँव के बाहर एक छोर में छोटी टेकरी पर ।

प्राचीनता: वि. सं. 1242 में श्रेष्ठी श्री पुनिग आदि श्रावकों द्वारा श्री महावीर स्वामी के मन्दिर (ब्रह्माणगच्छका) की भमती में श्री अजितनाथ भगवान की देरी के गुंबज की पद्मशिला करवाने का उल्लेख है।
विक्रम सं. 1287 में आबू देलवाड़ा के लावण्यवसही मन्दिर की व्यवस्था के लिए मंत्री श्री वस्तुपाल तेजपाल द्वारा स्थापित व्यवस्था समिति ने यहाँ के श्रीसंघ को प्रतिवर्ष होने वाले अठाई महोत्सव में फाल्गुन कृष्णा 5 (तृतीय दिवस) की पूजा रचवाने का कार्य सौंपा था । विक्रम सं. 1446 में इस मन्दिर में एक रंगमण्डप निर्माण करवाने का भी उल्लेख है। विक्रम सं. 1755 में श्री ज्ञानविमलसूरिजी द्वारा रचित "तीर्थमाला" में यहाँ का उल्लेख है। इन सबसे यह सिद्ध होता है कि यह मन्दिर विक्रम सं. 1242 से पहले का है । ब्रह्माणगच्छ की उत्पत्ति भी इसके पूर्व हो चुकी थी ।
यहाँ उपलब्ध मकानों के असंख्य खण्डहरों, प्राचीन बावड़ियों व कुओं से प्रतीत होता है कि किसी समय यह विशाल नगरी रही होगी। इस मन्दिर के जीर्णोद्धार का काम अभी-अभी हुआ है ।
विशिष्टता: ब्रह्माणगच्छ का उत्पत्ति स्थान यही है । प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला 13 को यहाँ पर मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु भक्तगण काफी संख्या में आकर भक्ति का लाभ लेते हैं ।
यहाँ का सूर्य मन्दिर भारत के प्रसिद्ध सूर्य मन्दिरों में एक है, जिसका निर्माण विक्रम की सातवीं सदी से पूर्व का बताया जाता है।
अन्य मन्दिर: वर्तमान में इसके अतिरिक्त एक और मन्दिर हैं ।
कला और सौन्दर्य: यहाँ के तीर्थाधिराज भगवान श्री महावीर की प्रतिमा की कला बेजोड़ है मन्दिर के घूमट पर किये हुए प्राचीन (श्री नेमिनाथ) भगवान की बरात, भगवान का जन्मोत्सव आदि) कला के नमूने दर्शनीय हैं। भगवान के आजू-बाजू श्री पार्श्वनाथ भगवान की काउसग्ग मुद्रा में दो प्रतिमाओं की, लक्ष्मी देवी, अम्बिका देवी व अन्य प्राचीन प्रतिमाओं की कला अति दर्शनीय है ।
मार्ग दर्शन: नजदीक का रेल्वे स्टेशन आबू रोड़ 44 कि. मी. हैं, जहाँ से टेक्सी व बस का साधन है। मन्दिर तक पक्की सड़क है । नजदीक के बड़े गाँव रेवदर 3 कि. मी. मन्डार 10 कि. मी. व जीरावला तीर्थ 5 कि. मी. है । इन जगहों से बस व टेक्सी का साधन है ।
सुविधाएँ: ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही विशाल धर्मशाला है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, भोजनशाला, चाय, नास्ता व भाते की सुविधा उपलब्ध है । यही पर दो हाल व उपाश्रय भी है ।
पेढ़ी: श्री वर्धमान जैन तीर्थ, वरमाण । पोस्ट : वरमाण 307 514.
व्हाया : रेवदर, जिला : सिरोही (राज.), फोन : 02975-64032.