भारत में भगवान महावीर के प्राचीन मंदिर

Ep-12: श्री बामणवाड़ तीर्थ

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[ पुरातन क्षेत्र, भोजनशाला की सुविधा, चमत्कारी क्षेत्र या मुनियों की तपोभुमि, कलात्मक ]


तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, प्रवाल वर्ण, लगभग 60 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)

तीर्थ स्थल: सिरोही रोड़ से 7 कि. मी. दूर वीरवाड़ा के पास जंगल में पहाड़ी की ओट में ।

प्राचीनता: शिलालेखों में इसका प्राचीन नाम ब्राह्मणवाटक आता है। यह तीर्थ जीवित स्वामी के नाम से प्रसिद्ध है । तपागच्छ पट्टावली के अनुसार श्री संप्रति राजा ने यहाँ मन्दिर बनवाया था। संप्रति राजा को प्रतिवर्ष पांच तीर्थों की चार बार यात्रा करने का नियम था, जिनमें ब्राह्मणवाड़ का नाम भी आता है।

श्री नागार्जुनसूरिजी, श्री स्कन्दनसूरिजी व श्री पादलिप्तसूरिजी आचार्यों को भी पांच तीर्थों की यात्रा का नियम था, उनमें भी ब्राह्मणवाड़ तीर्थ का उल्लेख है । श्री जयानन्दसूरिजी के उपदेश से वि. सं. 821 के आसपास पोरवाल मंत्री श्री सामन्तशाह ने कई मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। उनमें ब्राह्मणवाड तीर्थ भी था। अचंलगच्छीय महेन्द्रसूरिजी द्वारा वि. सं. 1300 के आसपास रचित अष्टोत्तरी तीर्थ माला में यहाँ श्री महावीर भगवान के मन्दिर में वीर प्रभु के चरणों युक्त स्युभ का उल्लेख है। वि. सं. 1750 में पं. श्री सौभाग्यविजयी द्वारा रचित 'तीर्थ माला' में भी यहाँ पर वीरप्रभु के चरणों का उल्लेख है।

कवि श्री लावण्यसमयगणी द्वारा वि. सं. 1529, श्री विशालसुन्दरजी द्वारा वि. सं. 1685 पं. श्री क्षेमकुशलजी द्वारा वि. सं. 1657 व श्री वीरविजयजी द्वारा वि. सं. 1708 में रचित तीर्थ स्तोत्रों में इस तीर्थ का महिमा गाई है । इस प्राचीन तीर्थ का अनेकों बार जीर्णोद्धार हुआ होगा । वर्तमान में श्री कल्याणजी परमानन्दजी पेढ़ी द्वारा जीर्णोद्धार का कार्य करवाया गया ।

विशिष्टता: कहा जाता है भगवान श्री महावीर के कानों मे कील लगाने का उपसर्ग यहीं हुआ था, जहाँ प्रभु की चरण पादुकाएँ प्रतिष्ठित हैं ।आचार्य श्री नागार्जुनसूरिजी, श्री स्कन्दनसूरिजी, श्री पादलिप्तसूरिजी एवं राजा श्री संप्रति यहाँ नियमित रूप से दर्शनार्थ आते थे ।

सिरोही के श्री शिवसिंहजी महाराज को राजगादी मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी परन्तु इस तीर्थ पर श्रद्धा व भक्ति के कारण वे सिरोही के राजा बने, अतः उन्होंने इस तीर्थ की कायम सुव्यवस्था के लिए आसपास के कुछ अरट, बावड़ियाँ, खेती योग्य भूमि आदि भेंट करके वि. सं. 1876 ज्येष्ठ शुक्ला 5 के दिन ताम्रपत्र लिखकर अर्पण किया। यहाँ अभी भी अनेकों चमत्कारिक घटनाएँ घटती हैं व श्रद्धालु भक्तजनों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

वि. सं. 1989 में अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर पोरवाल सम्मेलन यहाँ पर योगीराज श्री विजय शान्तिसूरीश्वरजी की निश्रा में सुसम्पन्न हुआ था, जो उल्लेखनीय है । सम्मेलन की पूर्णाहुती के समय

चैत्र कृष्णा 3 के शुभ दिन श्री संघ द्वारा योगीराज को कई पदवियों से अलंकृत किया गया था। अभी भी हमेशा सैकड़ों यात्रीगणों का यहाँ आवागमन रहता है। हर मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को भक्तजनों का विशेष आवागमन रहता है।


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अन्य मन्दिर: इसी पहाड़ी पर सम्मेतशिखर की रचना बहुत सुन्दर ढंग से की गई है जो दर्शनीय है। कहा जाता है भगवान महावीर के कानों में कील मारने का उपसर्ग यहीं हुआ था। जहाँ प्रभु के प्राचीन चरण चिन्ह है, व मन्दिर बना हुआ है। पहाड़ी पर एक कमरा है जहाँ आबू के योगीराज श्री विजयशान्तिसूरीश्वरजी महाराज प्रायः ध्यान किया करते थे, वहाँ उसी पाट पर जहाँ वे बैठते थे उनका फोटो रखा हुआ है, व कमरे में उनकी मूर्ति दर्शनार्य रखी हुई है ।

कला और सौन्दर्य: मन्दिर में श्री महावीर भगवान के 27 भवों के पट्ट संगमरमर में बनाये गये हैं वे अति ही सुन्दर व दर्शनीय है I बालू की बनी प्रभु प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर व प्रभावशाली है । सहज ही में भक्त का हृदय प्रभु तरफ लयलीन हो जाता है। जंगल में रहने के कारण यहाँ का प्राकृतिक दृश्य भी अति शान्तिप्रद है ।

मार्गदर्शन: यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन सिरोही रोड़ 7 कि. मी. है, जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा है । पिन्ड़वाड़ा गाँव 8 कि. मी. है जो के सिरोही रोड़ स्टेशन के पास ही है। सिरोही गाँव 16 कि. मी. है। आबू से व सिरोही रोड़ से सिरोही जानेवाली सारी बसें बामनवाड़ होकर ही जाती है। धर्मशाला के सामने ही बस स्टेण्ड है।


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सुविधाएँ: ठहरने के लिए मन्दिर के अहाते में ही विशाल धर्मशाला हैं, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन व ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा है।

पेढ़ी: श्री कल्याणजी परमानन्दजी पेढ़ी, जैन - तीर्थ श्री बामनवाडजी । पोस्ट : वीरवाड़ा - 307 022. तहसील: पिन्डवाड़ा, जिला : सिरोही, प्रान्त : राजस्थान, फोन: 02971-37270.

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