भगवान महावीर के बारे में जानकारी

Ep-6: भगवान श्री महावीर को किस वर्ष में, कहाँ, कैसे उपसर्ग हुए थे? उसकी सूची

भूमिका- जिसे मानवजाति को सत्य का दर्शन कराना हो, उसे अन्तिम कोटी का महाज्ञान प्राप्त करना ही चाहिए,
क्योंकि उसके बिना सत्य का यथार्थ शक्य नहीं है | कर्मो के आवरण से प्रच्छन्नज्ञान का महाप्रकाश आत्मिक परिशुद्धि के बिना संभव नहीं है | यह निर्मलता संयम और तप की महान साधना प्राप्त नहीं होती | यह एक निर्विवाद तथ्य है | इसीलिये तीर्थंकर होने के लिये जन्मे हुए परमपुरुष योग्य समय पर प्रथम ग्रहस्थाश्रम को अर्थात घर, कुटुम्ब परिवार और अन्य सभी बाह्य परिग्रहों को छोड़कर पापश्रवों को सर्वथा रोकने के लिये आजीवन संयम-दीक्षा व्रत ग्रहण करते है | वे प्रायः निर्वस्त्री, मौन होकर नग्न शरीर पर शीत धूप की परवाह किये बिना प्रत्येक गाँव, प्रत्येक नगर, प्रत्येक जंगल में विचरण करते है | 

शारीरिक आवश्यक धर्मो की भी उपेक्षा करके "देहदु:खं महाफलम" के सूत्रको सम्पूर्णरूप से आत्मसात कर लेते है | संयम और तप के बिना कभी किसी का उद्धार हुआ नहीं है, और होता भी नहीं है | वे शाश्वत सत्य का आलम्बन लेकर उसकी साधना में मग्न हो जाते है |


निंद्रा और आराम को तिलांजलि देते है | विहार में वे अधिकांश चैत्य, उधान, वन इत्यादि एकान्त स्थलो मे, एकाकी कायोत्सर्ग मुद्रा मे खड़े होकर विविध प्रकार के ध्यान मे निमग्न हो जाते है | समभाव में स्थिर होकर, अनेक जन्मो मे उपार्जित कर्मो को निर्जरा-क्षय करते जाते है | कर्मो को संपूर्णरूप से नष्ट अर्थात आत्म प्रदेशों से सर्वथा पृथक करने के लिए अपनी साधना को भगवान उत्तरोत्तर तीव्र करते जाते आई | हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रहम और परिग्रह आदि पापकर्मो से विभुक्त भगवान इंद्रियों की विषय-वासनाओं और क्रोधादि कषायों का रंग लेश मात्र भी कहीं न लग जाये, उसके लिये अपने मन, वचन और काया को अप्रमत्त भाव से प्रवर्तित करते है |
कैसे भी कष्ट, दु:ख,अपमान, अनादर, असुविधा और अनेक परिषहों को अदीन भाव से सहन करते है |


उनकी साधना यात्रा के अंतर्गत असुरों, सुरों, मनुष्यो अथवा पशुपक्षियों द्वारा होनेवाले उपसर्गों-उपद्रवों के विरोध 
की भावना के बिना-प्रतिकार की लेशमात्र भी भावना रखे बिना हँसते मुख से स्वागत करते है | और इस प्रकार करते 
हुए आत्मगुणों के घातक-घाती कर्मावरणों का सर्वथा क्षय करके, वीतराग की अवस्था को प्राप्त होकर, केवलज्ञान के महाप्रकाश को प्राप्त करते है | उसके प्राप्त कर लेने पर स्वयं को कृतकृत्य मानते है | और उसके पश्चात अपने ज्ञान प्रकाश द्वारा विश्व को सुख-शान्ति और कल्याण का राजमार्ग दिखते है |


भगवान महावीर ने भी उसी मार्ग से ज्ञानप्रकश प्राप्त किया था | उस प्रकाश प्राप्ति की साधना के भीतर असुरों, सुरों और मनुष्यों के द्वारा जो उपसर्ग हुए, वे कौन-कौन से और किस-किसने किये उसकी प्राप्त जानकारी यहाँ दी गयी है |

 

क्रमांक वर्ष स्थल प्रकार
कुमार गाँव, अस्थिक गाँव ग्वालों का, शूलपाणि का
उत्तर वाचला के पास, सुरभिपुर चण्ड्कौशिक सर्प का, सुंधष्ट्र देव का
चोरक कुएँ में डुबकाना
कलंबुका पीटकर के रस्सी से बांध दिया, लाढ-राढ़ की अनार्य भूमि के उपद्रव
कूपिक सन्निवेश, शालिशीर्ष मारना और गिरफ्तारी, कटपूतना व्यन्तरी का
लोहार्गल महावीर की गिरफ्तारी
अनार्य मानी जाती प्रणीत भूमि में लाढ-राढ़ से प्रसिद्ध प्रदेश की वज्रशुद्ध (म्र?) भूमि मानवकृत क्रूर उपसर्ग
११ द्रढ के पेढ़ालगाम के पोलस चैत्य संगम के २० उपसर्ग, तोसली गाम में फाँसी पर लटकना आदि
१३ षम्माणि ग्वाले के द्वारा कान में काष्ठ की कील ढोकने तथा काष्ठ की कील निकालने का

 

• गोशालक ने जो तेजोलेश्या फेंकी, यह भी उपसर्ग ही थी, परन्तु वह केवली अवस्था में हुआ था, अत: उसकी गणना न करते हुए उसे 'आश्चर्यो' की गणना में रखा गया है।

• ग्वालों के द्वारा प्रारम्भ हुए उपसर्गों की ग्वालोद्वारा पूर्णाहुति हुई। ये उपसर्ग मानव से प्रारम्भ हुये और मानव से पूर्ण हुये। योगनुयोग दोनों के स्थल, समय और निमित्त समान थे, बड़े उपसर्ग सूर्यास्त के बाद ही हुये हैं, और ऐसा होना स्वाभाविक भी था।

• भगवान के शरीर की सन्धियों की हड्डियों की बनावट असाधारण दृढ़ होती है। शास्त्र में जीवों के शरीर की सन्धियों की अस्थिरचना के भिन्न-भिन्न युग के आश्रय से छह प्रकार बताये गये हैं। उसके अंतर्गत यह प्रथम प्रकार है, जिसे शास्त्र "व्रज ऋषभनाराच संघयन" के नाम से परिचय देते हैं।

• वर्तमान युग के जीव अति अंतिम प्रकार की निर्बल अस्थि रचना को धारण करते हैं।

• १२ वर्षों तक दिन-रात अविरत ध्यानपूर्वक साधना बहुधा खड़े-खड़े की थी। आसान लगाकर तो स्वयं बैठे ही नहीं थे। प्रमाद रूप निद्रा काल की समय गणना एकत्रित करने पर १२ वर्षों के अन्तराल में मात्र दो घड़ी अर्थात ४८ मिनट की ही थी। कैसी प्रचण्ड साधना सचमुच! यह क्षणभर के लिए स्तब्ध कर देने वाली घटना है।

 

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