Ep-32: श्री कटारिया तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र ]
तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थस्थल: कटारिया गाँव में ।
प्राचीनता: यहाँ का इतिहास लगभग सात सौ वर्ष से पूर्व का होना माना जाता है । कहा जाता है कि धर्मपरायण दानवीर शेठ श्री जगडूशाह का यहाँ भी महल था । वि. सं. 1312 में शेठ श्री जगडूशाह द्वारा श्री भद्रेश्वर महातीर्थ का जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है अतः संभवतः यहाँ रहते समय वहाँ का जीर्णोद्धार करवाया होगा।
यह भी कहा जाता है कि एक समय यह एक भव्य नगरी थी, अतः उस वक्त इनके अतिरिक्त इस नगरी में और भी कई श्रावकों का निवास अवश्य रहा ही होगा व कई मन्दिरों का भी निर्माण हुआ होगा । कालक्रम से वह विराट नगर एक छोटे से गांव में परिवर्तित हो गया । उन प्राचीन मन्दिरों व महलों-मकानों का पता नहीं । संभवतः कभी भूकम्प आदि से भूमीगत हो गये होंगे।
वर्तमान में यहाँ पर यही एक मन्दिर है जिसका पुण्य योग से किसी के मकान की नींव खोदते वक्त पता लगा था। इसकी कला आदि को देखकर पुरातत्व विभाग वाले इसे लगभग पाँच सोह वर्ष पूर्वका मानते है।
यह मन्दिर आचार्य भगवंत श्री हीरविजयसूरीश्वरजी के शिष्य विजयसेनसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित माना जाता है। भूगर्भ से प्राप्त मन्दिर की कला व प्राचीनता को देखते हो सकता है उस वक्त इसका जीर्णोद्धार हुवा हो।
सुसंयोगवश निकट के गांव वांठिया में चातुर्मासार्य विराजित श्री आत्मारामजी म.सा. के शिष्य श्री कनकविजयजी म.सा. का वि. सं. 1978 में यहाँ आगमन हुआ । गुरुभगवंत की प्रेरणा से भूगर्भ से प्राप्त मन्दिर के जीर्णोद्धार का कार्य भी प्रारंभ हुआ । यहाँ के संघ की भावनानुसार गुरुदेव की प्रेरणा व सप्रयास से मूलनायक श्री महावीर प्रभु की यह प्राचीन प्रतिमा (जो किसी समय यहीं से वांठिया ले जाई गई थी) वांठिया गांव से पुनः यहाँ लाकर वि. सं. 1978 में विराजमान की गई।
जीर्णोद्धार का कार्य लगभग पूर्ण होने पर प्रतिष्ठा का मुहूर्त वि. सं. 1993 माघ शुक्ला पूर्णीमा निश्चय करके उन्हीं के हाथों प्रतिष्ठा करवाने का निश्चय किया गया, परन्तु संयोगवश उसके पूर्व ही गुरु भगवंत काल धर्म पा जाने के कारण कच्छ वागड देशोद्धारक प. पूज्य आचार्य भगत श्री कनकसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा कार्य हर्षोल्लासपूर्वक उसी मुहूर्त में सुसम्पन्न हुवा। तत्पश्चात उन्हीं के हाथों तलघर में भी श्री नेमिनाथ भगवान आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई ।
कालक्रम से दुर्भाग्यवश लगभग 7 माह पूर्व वि.नं. 2057 माघ शुक्ला 2 दिनांक 26 जनवरी 2001 को कच्छ में आये भयंकर भूकंप के कारण इस मन्दिर को भी पुनः भारी क्षति पहुँची व सारा मन्दिर, धर्मशाला, भोजनशाला आदि सभी इमारते भूमीगत हो गई, परन्तु देवयोग से प्रभु प्रतिमाएँ सुरक्षित हैं व पूजा-सेवा निरन्तर चालू है ।
मन्दिर के पुनः जीर्णोद्धार की योजना चालू है। पेढ़ी वालों का कहना है कि प. पूज्य आचार्य भगवंत श्री कनकसूरीश्वरजी म.सा. के प्रशिष्यरत्न अध्यात्ययोगी आचार्य भगवंत श्री कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. के यहाँ पधारने पर ही संभव होगा। इस वर्ष आचार्य भगवंत का चातुर्मास फलोदी (राज.) में हैं ।
विशिष्टता: चौदवीं सदी के प्रारंभ में हुऐ दानवीर शेठ श्री जगडूशाह का यहाँ भी महल रहने का उल्लेख है अतः यहाँ का इतिहास प्राचीनता के साथ अतीव गौरवमयी है। जगडूशाह अतीव दानवीर धर्मवीर व कर्मवीर शेठ हुवे, जिन्होंने बिना किसी जाती, पंथ व समुदाय आदि भेद के सबके लिये दानशालाएँ ही नहीं अपितु पूजा-पाठ हेतु धर्म स्थानों का भी निर्माण करवाकर जैन शासन का गौरव बढ़ाते हुवे पुण्योपार्जन का कार्य किया जो आज भी याद दिलाता है व प्रेरणाप्रद है ।
यह तीर्थ कच्छ वागड का प्राचीन, गौरवमयी, कलात्मक व भव्य तीर्थ रहा है। प्रभु से प्रार्थना है कि इसका पुनः यथाशिघ्र जीर्णोद्धार होकर गौरवमयी इतिहास को सदा के लिये कायम रखे ।

अन्य मन्दिर: इसके अतिरिक्त आज यहाँ और कोई मन्दिर नहीं है।
कला और सौन्दर्य: प्राचीन प्रभु प्रतिमा अतीव मनोरम व भावात्मक है ।
कलात्मक मन्दिर को भूकंप में क्षति पहुँचने के कारण सभी कलात्मक अवशेष भूमीगत हो चुके हैं ।
मार्गदर्शन: यहाँ का रेल्वे स्टेशन कटारिया मन्दिर से लगभग 1.5 कि. मी. दूर है ।यहाँ से भुज 105 कि. मी. लाकडिया 7 कि. मी. दूर है । गांव में आटो, टेक्सी आदि सवारी का साधन है ।
सुविधाएँ: हाल ही भुकंप के कारण क्षति पहुँचने से वर्तमान में यहाँ कोई सुविधा नहीं है । धर्मशाला आदि बनाने की योजना चालू है ।

पेढ़ी: शेठ वर्धमान आनन्दजी पेढ़ी, वल्लभपुरी पोस्ट : कटारिया -370 145.
जिला: कच्छ (गुजराज), फोन: 02837-73341. (पढ़ी) पी.पी. 02832-51816. फेक्स : 02832-52816.