Ep-9: श्री कोरटा तीर्थ
[ पुरातन क्षेत्र, भोजनशाला की सुविधा ]
तीर्थाधिराज: श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 135 सें. मी. । प्राचीन मूलनायक भगवान (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल: कोरटा गाँव के बाहर एकान्त जंगल में ।
प्राचीनता: किसी समय कोरटा एक प्रमुख नगर या व यहाँ पर जनसमृद्धि का कोलाहल विस्तृत आकाश को गुंजित करता था । इस मन्दिर की प्रतिष्ठापना चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान के 70 वर्ष बाद श्री पार्श्वनाथ संतानीय श्री केशी गणधर के प्रशिष्य व श्री स्वयंप्रभसूरीश्वरजी के शिष्य उपकेशगच्छीय ओशवंश के संस्थापक श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी के सुहस्ते माघ शुक्ला पंचमी गुरुवार के दिन धनलग्न ब्रह्म मुहुर्त में होने का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है ।
राजा भोज की सभा के रत्न पण्डित श्री धनपाल ने वि. सं. 1081 में रचित 'सत्यपुरीय श्री 'महावीरोत्सह' में कोरटा तीर्थ का वर्णन किया है। 'उपदेश तरंगिणि' ग्रन्थ में वि.सं. 1252 में नाहड़ मंत्री द्वारा 'नाहड़ वसहि' आदि अनेकों जिनमन्दिर बनवाने का व श्री वृद्धदेव सूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठा सम्पन्न होने का उल्लेख मिलता है । तपागच्छीय श्री सोमसुन्दरसूरिजी के समयवर्ती कवि मेघ द्वारा वि. सं. 1499 में रचित तीर्थमाला में भी इस तीर्थ का वर्णन है। वि.सं. 1728 में श्री विजयगणि के उपदेश से इस तीर्थ का उद्धार होने व प्राचीन प्रतिमा के स्थान पर श्री महावीर भगवान की दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठित किये जाने का उल्लेख है।
यह प्रतिमा खंडित हो जाने के कारण वि. सं. 1959 के वैशाख पूर्णिमा के दिन नवीन प्रतिमा की प्रतिष्ठापना श्री विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी के सुहस्ते सम्पन्न हुई थी। प्राचीन प्रतिमा मण्डप में विराजमान है। कुछ वर्षों पूर्व मन्दिर के जीर्णोद्धार का कार्य पुनः प्रारम्भ किया गया जो अभी तक चल रहा है।

विशिष्टता: वीर निर्वाण के 70 वर्ष पश्चात् कोरंटकगच्छ की स्थापना यहीं पर हुई थी, जिसके संस्थापक आचार्य श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी के गुरु भाई आचार्य श्री कनकप्रभसूरीश्वरजी माने जाते हैं । ओसवंश के संस्थापक आचार्य श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी ने अपनी अलौकिक विद्या से दो रूप करके एक ही मुहूर्त में ओसियाँ व कोरटा के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवायी थी। वि. सं. 1252 में आचार्य श्री वृद्धदेवसूरिजी ने मंत्री श्री नाहड़ व सालिग को प्रतिबोध देकर हजारों अन्य कुटुम्बीजनों के साथ जैनी बनाया था ।
अन्य मन्दिर: इसके अतिरिक्त गाँव में एक और श्री आदिनाथ भगवान का प्राचीन मन्दिर व एक गुरु मन्दिर है ।
कला और सौन्दर्य: प्राचीन मूलनायक भगवान की प्रतिमा अति ही सुन्दर व कलात्मक है। गाँव में स्थित श्री आदिनाय भगवान के मन्दिर में कुछ प्राचीन प्रतिमाओं की कला दर्शनीय है। इस मन्दिर के नीचे संग्रहालय है, जिसमें तेरहवीं सदी के प्राचीन तोरण आदि कलात्मक अवशेष दर्शनीय है ।
मार्गदर्शन: यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन जवाई बाँध 24 कि. मी. दूर है। नजदीक बड़ा शहर शिवगंज 13 कि. मी. है। इन जगहों से आटो व टेक्सियों की सुविधा है। सकती है । मन्दिर तक बस व कार जा सकती है।

सुविधाएँ: ठहरने के लिए गाँव में मन्दिर के सामने धर्मशाला है। जहाँ पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, भोजनशाला व भाते की सुविधा है । मन्दिर के सामने बगीचा बनाने की योजना है ।
पेढ़ी: श्री कोरटाजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी पोस्ट : कोरटा - 306901. व्हाया : शिवगंज
जिला: पाली, प्रान्त : राजस्थान, फोन: 02933-48235. शिवगंज पेढ़ी फोन: 02976-60969